COVID-19: अफवाह और हकीकत के बीच झूलता हमारा समाज


कोरोनाकी इस लड़ाई को किसी भी तरीके से धर्म के आधार पर विभाजन करने का साधन न
बनाया जाए लेकिन कुछ लोग अपनी हरकतों से बाजनहीं आ रहे
हैं। कुछ ख़बरें इस तरह की भी आ रही हैं कि कई जगह फल-सब्जीके ठेलोंपर बहुसंख्यक धर्म के प्रतीक झंडे लगा
दिए गए हैं और लोगों से कहा जा रहा है कि केवल ऐसेझंडे
लगे ठेलोंसे ही सामान खरीदें।



कोरोना तालाबंदी के बीच कई तरह की चर्चाएं आम हैं। ये महज चर्चाएं नहीं हैं वरन ये सभी सच्ची दास्तां भी हैं,जिनमें खुशी भी है और गम भी। ये चर्चाएं खुशभरी कम लेकिन दुखभरी अधिक हैं। शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से होती है जहां कोरोना पीड़ितों का इलाज करने गए चिकित्सा दल के सदस्यों पर स्थानीय लोगों ने प्राणघातक हमला किया जिसमें कई लोगों को चोट आयीं, डॉक्टर भी घायल हो गए। इसी तरह के हमले इंदौर समेत देश के कई शहरों में पहले भी हो चुके हैं। इस तरह का हमला करने वाले लोगों में समाज के एक ख़ास तबके का नाम लिया जा रहा है जिनके तार कट्टर इस्लामी जमात से जुड़े बताये जाते हैं।

इसी जमात के एक अंतर्राष्ट्रीय समारोह में शामिल होने के लिए देश के कई शहरों से हजारों लोग पिछले महीने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में भी एकत्र हुए थे। बताया जाता है कि इन जमातियों में कई विदेशी कोरोना पॉजिटिव भी थे। उनसे यह रोग भारत के दूसरे शहरों में भी पहुंच गया। देश में कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कोरोना पीड़ितों का इलाज करने के लिए पहुंची टीम पर जानलेवा हमला करने वाले लोग समाज के इसी तबके से जुड़े हुए हैं। इन लोगों की यह बात कितनी सच है इसका पता तो जांच के बाद ही चल सकेगा। 

जांच जारी है लेकिन समाज के किसी एक तबके पर इस तरह का एकतरफ़ा आरोप लगाना भी ठीक नहीं है क्योंकि इसी तबके के असंख्य लोग अपनी जान की परवाह किये बगैर पुलिस, डॉक्टर, सफाईकर्मी और अन्यान्य रूपों में कोरोना पीड़ितों की सेवा में लगे भी हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने संबोधन में कई बार इस तरफ इशारा कर चुके हैं कि कोरोना से लड़ाई में हर भारतवासी एकजुट है चाहे वो किसी धर्म,जाति,क्षेत्र और परिवेश का क्यों न हो। इसी सन्दर्भ में देश के राज्य छत्तीसगढ़ से भी एक जानकारी मिली है जिसके मुताबिक़ जमात के दिल्ली समागम में शामिल होने वाले राज्य के जिन 158 लोगों की पड़ताल की गई उनमें 107 हिन्दू निकले और 51 मुस्लिम।

दरअसल, हुआ यह कि उस दौरान इस राज्य से जितने लोग दिल्ली आये थे उनकी मोबाइल लोकेशन दिल्ली के उसी मरकजी इलाके के आसपास की मिली जहां जमात का यह आयोजन हुआ था। जांच के दौरान ऐसा होता है और यह एक तकनीकी दिक्कत है इस तरह की जांच के परिणाम से किसी तरह के निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। इसी तरह का भेदभाव गलियों-चौबारों में फल-सब्जी और रोजमर्रा का दूसरा सामान बेचने वालों के बारे में भी कही जा रही हैं। कहा जा रहा है कि एक ख़ास धर्म के ऐसे बिक्रेता जान-बूझकर आम लोगों को अपना सामान बेच कर कोरोना से संक्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह भाषा की पहचान किसी धर्म से नहीं हो सकती उसी तरह आम, आलू, तरबूज, केला, ककडी, दाल, चावल, नमक, चीनी, दूध- दही या कोई भी खाने- पहनने के काम आने वाली वस्तु की पहचान किसी धर्म से नहीं हो सकती। 

सरकार भी बार- बार यह अनुरोध कर रही है कि कोरोना की इस लड़ाई को किसी भी तरीके से धर्म के आधार पर विभाजन करने का साधन न बनाया जाए लेकिन कुछ लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।कुछ ख़बरें इस तरह की भी आ रही हैं कि कई जगह फल-सब्जी के ठेलों पर बहुसंख्यक धर्म के प्रतीक झंडे लगा दिए गए हैं और लोगों से कहा जा रहा है कि केवल ऐसे झंडे लगे ठेलों से ही सामान खरीदें। कोरोना एक ऐसी बीमारी है जो किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फसिल सकती है यह रोग व्यक्ति और धर्म में किसी तरह का फर्क नहीं करता। कई ऐसे लोगों से भी कोरोना का विस्तार हुआ जो अपने ही धर्म के थे। कोरोना से लड़ने के लिए सामाजिक दूरी या यूं कहें एकांतवास सबसे बड़ी शर्त है और प्रधानमंत्री बार-बार इसी बात पर जोर दे भी रहे हैं लेकिन लोग हैं कि उनकी भी नहीं सुन रहे हैं। 

इस बीच ऐसी ख़बरें भी सुनने को मिली जो प्रेरणादायी कही जा सकती हैं।ऐसी एक घटना दक्षिण दिल्ली नगर निगम के पोलीक्लीनिक के एक वरिष्ठ डॉक्टर के जीवन से जुडी है। मूल रूप से बिहार निवासी इस चिकित्सक डॉक्टर जेपी यादव का असमय तब निधन हो गया जब वो दिन भर कोरोना पीड़ितों की सेवा करने के बाद शाम को घर लौट रहे थे। घटना सोमवार 13 अप्रैल की बताई जाती है। उस दिन उनकी कार अचानक खराब हो गई थी। लॉक डाउन के चलते वर्कशॉप बंद थे और तुरंत कोई मेकेनिक उपलब्ध नहीं था। उनको किसी भी हालत में अपने सहयोगियों को पीपीई किट पहुंचाने थे। लिहाजा वो अपनी कर छोड़ कर अपने बेटे की साइकिल लेकर ही काम पर निकल गए। शाम को घर वापसी के दौरान एक तेज रफ़्तार कार ने इतनी जोर की टक्कर मारी कि इस दुर्घटना में उनकी जान ही चली गई। इसी तरह की कई ख़बरें हैं जिन्हें पॉजिटिव सन्दर्भ में देखा जा सकता है। जाति और धर्म के बंधन से दूर असंख्य लोग संकट की इस घड़ी में कोरोना वायरस से लड़ने के बहाने सत्य और निष्ठा के साथ मानवता की सेवा में लगे हुए हैं। कई हिन्दू अपने पड़ोसी मुस्लिमों को दो जून की रोटी और जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध करा रहे हैं। कई मुस्लिम भी मनोयोग से अपने हिन्दू पड़ोसियों की मदद कर रहे हैं। 

उधर कुछ ऐसा भी हो रहा है कि घर-घर जाकर पिज्जा डिलीवरी करने वाले एक व्यक्ति को अपने किसी ग्राहक से डिलीवरी के दौरान कोरोना से संक्रमण का इनाम मिला जिसका उसे पता ही नहीं चल सका और अनजाने में ही उस डिलीवरी ब्वॉय से 72 परिवारों के लोग संक्रमित हो गए। वो बेचारा डिलीवरी ब्वॉय तो विदेश गया नहीं होगा, उसको संक्रमण किसी विदेश से भारत लौटने वाले अपने नियमित ग्राहक से ही हुआ होगा। लेकिन कोई बताने वाला नहीं है और देखते ही देखते एक इलाके के 72 परिवारों के लोग जांच की जड़ में आ गए। सवाल यह भी कि क्या लॉक डाउन के समाप्त होने तक हम अपनी चटोरी जबान पर नियंत्रण नहीं रख सकते। 
( लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)