नई दिल्ली। लुटियंस की दिल्ली इस समय ‘राममय’ है। मानो समूचा अयोध्या दिल्ली पहुंच गया है। अयोध्या से आए संत-महात्मा राजधानी दिल्ली में हुक्मरानों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ा रहे हैं। संत-महात्मा और भारतीय परंपरा के बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञों तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं कि लोकतंत्र को समझने और साकार करने के लिए रामराज्य का आदर्श जानना जरूरी है।
दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में चहल-पहल है। माहौल में शिष्टता है। कोरोना महामारी के बावजूद लोगों में उत्साह है। हर कोई कांस्टीट्यूशन क्लब पहुंचना चाह रहा है। क्योंकि अयोध्या से पधारे लोगों ने उसी स्थान को तीन दिवसीय अयोध्या पर्व के लिए चुना है। राजधानी में 5 अप्रैल से शुरू हुआ यह पर्व 7 अप्रैल तक चलेगा। इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने किया।
अयोध्या पर्व के दूसरे दिन राम के जीवन और रामराज्य के शासन-व्यवस्था पर चर्चा हुई। इस दौरान दो संगोष्ठीयां रखी गयीं। पहली संगोष्ठी, ‘स्वराज और सुराज’ और दूसरी संगोष्ठी, ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लोकतंत्र’ विषय पर केंद्रित थी।
इस दौरान बुद्धजीवियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लोकतंत्र पर चर्चा के दौरान कहा कि राम का जीवन-आदर्श है। ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लोकतंत्र’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार जवाहरलाल कौल ने कहा-हमारे देश में ऐसा कोई नहीं है जो बादशाह के खिलाफ खड़ा हो सके। और उसी से ये अपने अपने राज्य की पताका राजा राम के दरबार में पेश करने की प्रथा चल पड़ी। सभी प्रजा को लगता था कि अगर कोई रक्षक है तो वो राजा राम हैं। तुलिदास ने रामचरितमानस में कहा कि उन्होंने रामायण की रचना अपने सुख के लिए लिखा। लेकिन दुनिया नही जानती थी कि तुलसीदास का सुख कितना बड़ा है। इस तरह के महान ग्रंथो को जब हम गहराई से पढ़ने की कोशिश करते हैं तो हमें उनके पीछे का अर्थ की आखिर उसका अर्थ क्या है? वह क्यों लिखे गये? यह भी समझ में आना चाहिए।
तुलसीदास और सूरदास में एक बड़ा अंतर है सूरदास कृष्णभक्त थे और प्रेम-भक्ति में उनका विश्वास था। तुलसीदास एक सामाजिक विचार उनके मन में यह विश्वास था कि एक ही रक्षक समाज में सभी वर्गों का आदर्श बन सकता है तो वह है ‘राम’। राम ऐसे राजा थे जो खुद नरक के जीवन जीने को जब विवश थे उन्होंने अपने आपको राजपक्ष से अलग रख प्रजा में आदर्श की स्थापना की।
जिन चीजों को आज के लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं उन सब तत्वों को राम के जीवन में देख लीजिए तो हमें लगेगा कि राम का जीवन या राम का व्यवहार या जिसे रामवत्व कह सकते हैं वो सही मायने में लोकतंत्र की एक व्यवस्था है। अगर गांधी जी रामराज्य की बात करते हैं तो उनके मन में भी यही बात होती थी। रामराज्य में भी यही धारणा थी कि जो आज का लोकतंत्र है उसमें अगर राम का व्यवहार जोड़ दिया जाये तभी वो सही मायने में लोकतंत्र होगा।
राम इस राष्ट्र का तत्व है इस राष्ट्र का सार है। बिना राम के इस राष्ट्र का वो लक्ष्य पूरा नही होगा जो आज हमने तय किया है।राम हमारे लिए न केवल आध्यात्मिक देवता हैं बल्कि वो हमारे लिए एक नायक हैं। एक महान योद्धा है। एक महान नायक है जो संकट के घड़ी में हमारे लिए किसी न किस रूप में हमारे सामने आते हैं। इसलिए हमें मानना चाहिए राम और रामायण और राम का व्यवहार चाहे लोकतांत्रिक व्यवस्था हो चाहे स्थानीय व्यवस्था हो चाहे हमारी अर्थव्यवस्था हो सब में हमारे लिये एक मार्गदर्शक के रूप में खड़े हैं राम।
संयोजक लल्लू सिंह जी ने अयोध्या पर्व के दूसरे दिन सभी वक्ताओं का स्वागत किया और आभार प्रकट किया और कोरोना के बाद एक भव्य आयोजन का आश्वासन लल्लू सिंह जी ने दिया ।