क्यूएस एशिया रैंकिंग 2022: जामिया 186वां स्थान पर काबिज, जानें कैसे होती है रैंकिंग

Satish Yadav Satish Yadav
दिल्ली Updated On :

लंदन स्थित क्यूएस एशिया रैंकिंग 2022 के नतीजे मंगलवार को जारी कर दिए गए हैं। इस रैंकिंग में भारत के विश्वद्यालयों को कौन सा स्थान प्राप्त हुआ इसके साथ-साथ आइए जानते है कि यह रैंकिंग किस पैमाने पर की जाता है। इन सभी सवालों का जवाब एक-एक करके जानते हैं।

भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग
दिल्ली विश्वविद्यालय 77
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 81
हैदराबाद विश्वविद्यालय  142
जादवपुर विश्वविद्यालय 147
कलकत्ता विश्वविद्यालय 154
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय 180

इस रैंकिग में जामिया मिल्लिया इस्लामिया को 186वां स्थान प्रदान किया गया है। अगर पिछले साल से तुलना की जाए इस साल की 203वीं रैंक से बहुत बेहतर है। प्रतिष्ठित क्यूएस एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग-2022, में 687 शीर्ष एशियाई विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है।

किस पैमाने पर रैंकिंग हुई
किस पैमाने पर रैंकिंग हुई
शैक्षणिक प्रतिष्ठा 30 फीसदी
नियोक्ता प्रतिष्ठा 20 फीसदी
संकाय छात्र अनुपात 10 फीसदी
अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क 10 फीसदी
प्रति पेपर उद्धरण 10फीसदी
प्रति संकाय पेपर 5
पीएचडी प्राप्त कर्मचारी 5 फीसदी
अंतर्राष्ट्रीय संकाय का अनुपात 2.5 फीसदी
प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का अनुपात 2.5 फीसदी
इनबाउंड एक्सचेंज छात्रों का अनुपात 2.5 फीसदी
आउटबाउंड एक्सचेंज छात्रों का अनुपात 2.5 फीसदी

क्यूएस (QS) क्या है?
क्यूएस (QS) यानी क्वैक्रेली साइमंड्स एक लंदन की कंपनी है जो दुनिया भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के विश्लेषण में विशेषज्ञता रखती है। इसकी स्थापना 1990 में की गयी थी। क्वैक्रेली साइमंड्स दुनियाभर के शिक्षण संस्थानों के लिए विभिन्न रैंकिंग जारी करती है, गौरतलब है कि यह संस्था क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग और क्यूएस एशिया रैंकिंग दोनों करता हैं।

भारत के विश्वविद्यालयों की इस रैंकिग में पिछे रहने का कारण
भारत के विश्वविद्यालयों के इस रैंकिग में निचे रहने का प्रमुख कारण यह है कि अधिकतर रेटिंग संस्थाएं रेटिंग के लिए विदेशी फैकल्टी एवं विदेशी छात्र के अनुपात को ज्यादा महत्व देती हैं जिसका खामियाजा भारतीय संस्थानों को उठाना पड़ता है।

परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी एवं विकसित देशों में स्थित विश्वविद्यालय को भारतीय विश्वविद्यालयों की तुलना में छात्रों एवं शिक्षकों के द्वारा ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है जिसके कारण भारतीय विश्वविद्यालय की रैंकिंग पर विपरित प्रभाव पड़ता है। अधिकतर वैश्विक विश्वविद्यालयों की तुलना में भारत के विश्वविद्यालयों को कम स्वायत्तता  (autonumus) प्राप्त होती है।



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