
कोरोना महामारी का प्रतिकूल असर अब जन स्वास्थ्य के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था पर भी साफ़ दिखाई देने लगा है। विश्व श्रम संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस की मौजूदा स्थिति के चलते विश्व बाजार में नकदी का भयंकर संकट पैदा हो गया है और अकेले भारत में ही 40 करोड़ मजदूरों के सामने गरीबी का संकट पैदा हो गया है। कृषि और ओद्यौगिक मजदूरों के सामने नौकरी का भी संकट है क्योंकि राष्ट्रीय लॉकडाउन के चलते पिछले लगभग एक महीने से न तो खेतों में काम हो सका है और न ही कारखानों में ही उत्पादन का सिलसिला जारी रह सका। इससे हुआ यह कि बड़ी तादाद में श्रमिक बेरोजगार हुए और खेतों में खड़ी गेहूं जैसी फसल की कटाई नहीं हो सकी है। इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ना ही था। लेकिन सरकार की भी मजबूरी थी कि जब कोरोना वायरस से बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगे तो इसको रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे फैसले लेने ही पड़े।
कोरोना वायरस को सामाजिक दूरी या एकांतवास से ही वायरल होने से बचाया जा सकता था। वही सरकार ने किया भी। सरकार के इस प्रयास का अनुकूल असर भी हुआ। इसे देखते हुए ही सरकार ने अब कुछ शर्तों के साथ खेत-खलिहान के साथ ही कल-कारखानों में भी एक सीमा के अन्दर काम काज शुरू करने की योजना बनाई है। दूसरी तरफ सरकार की कोशिश देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने की भी है। एक लम्बे अरसे से बंद काम को इतने बड़े पैमाने पर फिर से शुरू करने के लिए नकदी की भी जरूरत होगी। इसलिए सरकार के निर्देश पर देश के केन्द्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इस दिशा में कुछ पहल की है। जिससे भविष्य के कामों के लिए देश में नकदी की कमी ना रहे। कोरोना के इसी सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों के रिवर्स रेपो रेट में 0.25 फीसद की कटौती का एलान किया है।
देश के केन्द्रीय बैंक के इस एलान से एक लम्बे अरसे से बंद कामों को फिर से शुरू करने के लिए लगभग 50,000 करोड़ रुपये की नकदी का प्रबंध होने का अनुमान है। कोरोना से देश की अर्थव्यवस्था पर उपजे गंभीर आर्थिक संकट से निपटने के लिए ही शुक्रवार 17 अप्रैल को रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की गरज से लिए गए इस आशय के फैसले की जानकारी देश को दी।
इस दौरान उन्होंने कहा कि केन्द्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो रेट को 4 फीसद से घटाकर 3.75 फीसद कर दिया लेकिन रेपो रेट को बरकरार रखा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वैश्विक मंदी के अनुमान के बीच भारत की विकास दर अब भी पॉजिटिव रहने का अनुमान है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत की यह विकास दर 1.9 फीसद रहेगी। इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक के लिए भी राहत की घोषणा करते हुए इस बात का खुलासा किया कि नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक को 50000 करोड़ की मदद की जायेगी और नाबार्ड को स्पेुशल रिफाइनेंस के तहत 25,000 करोड़ रुपये और मिलेंगे।
रिवर्स रेपो रेट में कटौती और प्रमुख बैंकों को विशेष आर्थिक मदद का एलान करने के साथ ही रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने प्रेस कांफ्रेंस में यह खुलासा भी किया कि कोरोना वायरस के संकट के दौर में भी देश में एटीएम 91 फीसद क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। इसके अलावा लॉकडाउन में मोबाइल और नेटबैंकिंग में कोई परेशानी नहीं है। सिस्टम में लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए आरबीआई ने नए कदमों का एलान किया। बैंक क्रेडिट फ्लो में छूट के लिए नए प्रस्तावों पर विचार किया गया।
ज्ञातव्य है कि 27 मार्च के बाद लिक्विडिटी में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। स्टिल अकाउंट्स पर बैंकों को 10 फीसदी की प्रोविजनिंग मेनटेन करना होगा। श्रीदास ने कहा कि वैश्विक अर्थव्य वस्था भारी मंदी में जा सकती है। उन्होंने कहा कि 27 मार्च के बाद माइक्रो इकोनॉमिक गतिविधियों में कमी आई। गौरतलब है कि मार्च में सर्विसेज पीएमआई में गिरावट दर्ज की गई। मार्च 2020 में निर्यात की स्थिति भी काफी ज्यायदा खराब रही है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के बावजूद कृषि क्षेत्र में बुवाई की स्थिति बेहतर रही है। इसलिए, सामान्य मानसून के अनुमान से ग्रामीण क्षेत्रों से बेहतर मांग की उम्मी्द है। इसके साथ ही केन्द्रीय बैंक की पहल पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है। इसी सन्दर्भ में केन्द्रीय बैंक की एक कोशिश कोरोना से बने हालात पर लगातार नजर रखने की भी है और ऐसा किया भी जा भी रहा है।
प्रसंगवश यह जान लेना भी जरूरी हो जाता है कि आखिर यह रिवर्स रेपो रेट होता क्या है। बैंक विशेषज्ञों के मुताबिक़ यह रेपो रेट के बिल्कुल विपरीत होता है। रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से रिज़र्व बैंक में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है,आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता हैऔर जब नकदी की कमी होती है तो इसमें कमी करता है ताकि बाजार में नकदी की कमी का संकट पैदा न हो। इस वक़्त भी बाजार की असामान्य परिस्थितियों को ध्यान में रख कर ही केन्द्रीय बैंक ने यह कदम उठाया है।
(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)