डॉ. स्कन्द शुक्ल
कहावत है कि जब दो हाथी लड़ते हैं, तब सबसे अधिक नुकसान घास उठाती है। इस लेख में इसी गज-मल्ल और कुश-तृण-मर्दन की कथा है। कोविड-19 एक संक्रामक महामारी है, जिसका कारण सार्स-सीओवी 2 नामक विषाणु है। श्वसन-तन्त्र में प्रवेश के बाद ये विषाणु मानव-फेफड़ों की कोशिकाओं की सतह से अपनी सतह पर मौजूद प्रोटीनों द्वारा चिपक जाते हैं। इसके बाद इन विषाणुओं के भीतर मौजूद आरएनए कोशिकाओं के भीतर प्रवेश कर जाता है, जहां वह नयी विषाणु-प्रतिलिपियां बनाने लगता है। इसके बाद जब यह व्यक्ति खांसता-छींकता-बोलता-थूकता है अथवा इन गतिविधियों के बाद अपने संक्रमित हाथों से नयी जगहों को छूता है, तब वह इन स्थानों पर भी विषाणु पहुंचा देता है।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न कोविड-19 में होने वाली मृत्यु के विषय में है। इस संक्रमण के बाद मृत्यु की सीधी वजह क्या होती है? क्या विषाणु नयी-नयी प्रतियां बनाते हुए फेफड़ों की कोशिकाओं को नष्ट करता जाता है? अथवा रोगी का प्रतिरक्षा-तन्त्र इन विषाणु-ग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करते समय एक क़िस्म की अति कर जाता है और उसके कारण रोगी को अधिक क्षति पहुंचती है।
दुनिया-भर के डॉक्टर व वैज्ञानिक इन दोनों पक्षों को विस्तार से समझने में लगे हैं। सीधे-सीधे विषाणु से होने वाला नुकसान कितना और विषाणु का प्रतिरोध कर रहे प्रतिरक्षा-तन्त्र के कारण कितना? कारण कि इन दोनों बातों को समझने के बाद ही दुनिया-भर के रोगियों का सही ढंग से उपचार किया जा सकेगा। यदि विषाणु से प्रत्यक्ष होने वाली हानि बड़ी है, तब एंटीवायरल दवाएं अधिक लाभप्रद रहेंगी। ऐसे में एंटीकोरोना-विषाणु दवाओं के विकास पर विज्ञान को अधिक ध्यान देना चाहिए। यदि प्रतिरक्षा-तन्त्र की अत्यधिक प्रतिक्रिया के कारण हानि अधिक हो रही है, तब प्रतिरक्षा-तन्त्र का शमन करने वाली दवाओं पर काम करना समझदारी होगी।
आम तौर पर लोगों के लिए यह सोचना अजीब लग सकता है। ज़्यादातर लोग अब-तक यही सोचते हैं कि विषाणु सीधे-सीधे फेफड़ों की क्षति के लिए उत्तरदायी है। प्रतिरक्षा-तन्त्र तो हमारा अपना है, हमारे भीतर है। वह हमें ही क्यों नुकसान करेगा? उसके कारण हमारे ही अपने फेफड़े क्यों क्षतिग्रस्त होंगे?
कोविड-19 से संक्रमित मानव-प्रतिरक्षा-तन्त्र की सार्स-सीओवी 2 से यह पहली मुलाक़ात है। सन् 2019-20 से पहले हमारी प्रतिरक्षक कोशिकाओं का इस विषाणु से कोई परिचय नहीं था। ऐसे में जब इस बिना-ट्रेनिंग पाये प्रतिरक्षा-तन्त्र का सामना इस नवीन कोरोना-विषाणु से होता है, तब वह कई बार अतिरेकी व्यवहार कर जाता है। उसकी कोशिकाएं सायटोकाइन कहलाने वाले रक्षक या सूचक रसायनों का अत्यधिक स्राव करती हैं, जिनके कारण तरह-तरह की लड़ाकू कोशिकाएं फेफड़ों में पहुंच जाती हैं। वहां वे विषाणु-ग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करने का प्रयास करती हैं। विषाणु, उनसे लड़ती प्रतिरक्षक कोशिकाएं व उनसे निकलते तरह-तरह के सायटोकाइन मिलकर फेफड़ों को क्षतिग्रस्त करते हैं। नतीजन शक्तिशाली हाथियों के इस मल्ल में सर्वाधिक मर्दन घास का होता है।
दुनिया-भर के डॉक्टर व वैज्ञानिक उन सायटोकाइनों को चिह्नित करने में लगे हैं जिनका स्तर कोविड-19-रोगियों में बढ़ जाता है। ऐसा ही एक सायटोकाइन इंटरल्यूकिन 6 है। फेफड़ों व रक्त में इस रसायन का बढ़ा स्तर मैक्रोफेज नामक कोशिकाओं को फेफड़ों में बुला सकता है। ये मैक्रोफेज स्वयं व अन्य कोशिकाओं को भी वहां बुलाकर फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं। तो क्या इस सायटोकाइन के कार्य को अवरुद्ध करके क्या फेफड़ों में होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है? संसार-भर के गठिया-रोग-विशेषज्ञ टोसिलीज़ुमैब नामक इंटरल्यूकिन 6 रिसेप्टर-इन्हिबिटर दवा का अनेक गठिया-रोगों में इस्तेमाल करते हैं। पर कोविड-19 के मामले में पता नहीं-अभी कुछ भी कहना ज़ल्दबाज़ी होगी।
ग्लूकोकॉर्टिकॉयड दवाओं को लेकर भी भ्रम की स्थिति है। इन दवाओं को आम लोग स्टेरॉयड कहते हैं और इनका प्रयोग प्रतिरक्षा-तन्त्र के शमन के लिए किया जाता है। किन्तु प्रतिरक्षा-तन्त्र का बिना सोचे-विचारे किया गया शमन व्यक्ति में अनेक प्रकार के संक्रमणों का ख़तरा बढ़ा देता है। क्या कोविड-19 के मरीज़ों में ग्लूकोकॉर्टिकॉयड-दवाओं के प्रयोग उचित रहेगा? दें कि न दें? किस डोज़ में और किस प्रोटोकॉल के अन्तर्गत दिया जाए? अनेक शोध इस पर भी चल रहे हैं।
विषाणु-बनाम-प्रतिरक्षा-तन्त्र की जंग में हम-डॉक्टरों को कोविड-19-संक्रमित रोगी के फेफड़ों व शरीर को बचाना है। दो शक्तिशाली हाथियों की इस लड़ाई में एक पालतू हाथी अपना भी है। घास व उसके नीचे की मिट्टी को बचाने के लिए उसपर अंकुश चलाएं कि नहीं? चलाएं तो कितना और कब? कहीं ऐसा न हो कि अपने पालतू को हम इतना थाम लें कि सामने का जंगली गजराज बेलगाम होकर घास को मसलता हुआ मिट्टी खोद डाले।
(डॉ. स्कन्द शुक्ल वरिष्ठ चिकित्सक हैं और लखनऊ में रहते हैं।)