कोरोना और जैविक हमला


निकी हैली ने अपने अभियान के माध्यम से इस बात पर जोर दिया है कि चीन की साम्यवादी सरकार को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए कि उसने कोरोना मामले में झूठ बोल कर दुनिया को भ्रम में डाला है। निकी हैली की माने तो चीन द्वारा इस बारे में फैलाया गया भ्रम यही है कि उसने इस तरह के आरोपों से साफ़ इनकार किया है कि कोरोना के वायरस का जन्म उसकी प्रयोगशाला में हुआ है।



दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका ने एक बार फिर चीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है कि उसने जैविक तरीकों से अपनी प्रयोग शाला में कोरोना के वारस को इजाद किया है।विगत मंगलवार 28 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर फिर इस तरह का आरोप लगाया है। अमेरिका इस मामले में चीन को पहले इस कदर आरोपित कर चुका है कि अमेरिका समेत यूरोप के कई पिछलग्गू देश भी इस मामले में चीन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाने की मांग कर चुके हैं।
अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की नेता निकी हैली ने तो बाकायदा, “साम्यवादी  चीन को रोको ” नाम से ही एक अभियान की शुरुआत कर ही दी है। हैली ने अपने अभियान के माध्यम से इस बात पर जोर दिया है कि चीन की साम्यवादी सरकार को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए कि उसने कोरोना मामले में झूठ बोल कर दुनिया को भ्रम में डाला है। निकी हैली की माने तो चीन द्वारा इस बारे में  फैलाया गया भ्रम यही है कि उसने इस तरह के आरोपों से साफ़ इनकार किया है कि कोरोना के वायरस का जन्म उसकी प्रयोगशाला में हुआ है।
चीन पर अमेरिका की नाराजगी इसीलिए है कि जब शुरुआती दौर में ही अमेरिका की तरफ से चीन पर इस तरह के आरोप लगाए गए थे तब पलट कर चीन ने भी अमेरिका पर इसी तरह के जवाबी आरोप लगा दिए थे । चीन का जवाब देना अमेरिका को इसलिए भी नागवार गुजर रहा है क्योंकि कोरोना की वजह से अमेरिका में अबतक सबसे ज्यादा लोगों के मारे जाने की ख़बरें भी आ रही हैं , इस मामले में अमेरिका की स्थिति आनुपातिक रूप में चीन के वूहान और इटली समेत यूरोप के कई देशों से भी ज्यादा खराब बताई जा रही है ।

इन हालातों में चीन पर अमेरिका की खीज उतरना इसलिए भी  स्वाभाविक माना जा सकता है क्योंकि है क्योंकि जब बाजार की बात आती है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसका मुकाबला चीन से ही है। इस वजह से दुनिया की दोनों बड़ी ताकतें कोरोना को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। इस बाबत एक चर्चा यह भी है कि अमेरिका में कोरोना का आयात चीन से हुआ जबकि चीन का कहना है कि अमेरिका में कोरोना वायरस चीन से नहीं बल्कि इटली अथवा दूसरे किसी यूरोपीय देश से पहुंचा है।
बहरहाल दोनों देशों के बीच कोरोना को लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाने की जंग जारी है। देखने वाली बात यह होगी कि इस जंग में आखिर जीत किसकी होगी।
कहना गलत नहीं होगा कि निकी हैली का यह चीन विरोधी अभियान भी भी चीन के खिलाफ इसी जंग का ही एक हिस्सा है,अपने चीन विरोधी अभियान के तहत ही निकी हैली ने एक ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर करवाने का सिलसिला बनाया है। इस याचिका में अमेरिकी संसद से इस मामले में प्रतिक्रिया देने की अपील की गई है। बताते हैं कि चीन विरोधी इस याचिका पर विगत शुक्रवार 26 अप्रैल 2020 तक ही 40 हजार से ज्यादा लोग हस्ताक्षर कर चुके थे। बाद के दिनों में तो याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों का आंकड़ा एक लाख तक तो पहुंच ही जाना चाहिए ।इस याचिका पर इतने ही हस्ताक्षर कराने का लक्ष्य शुरू में तय किया गया था। हस्ताक्षर करने की रफ़्तार से लगता है कि भारतीय मूल की अमेरिकी नेता का यह लक्ष्य अब तक पूरा हो ही गया होगा। पूर्व में संयुक्त राष्ट्र  में अमेरिका की राजदूत रह चुकी निकी हैली का इस बारे में साफ़ कहना है कि कोरोना मामले में चीन को इस वक़्त रोकना बहुत जरूरी है।  

अमेरिका में कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ चलाया जा रहा इस तरह का अभियान इसलिए भी चौंकाने वाला लगता है  क्योंकि दुनियाभर में 24 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुके, करीब पौने दो लाख  लोगों की जान ले चुके कोरोना वायरस के बारे में अभी तक की वैज्ञानिक जांच से जो जानकारिया  मिली  हैं उनमें  किसी ने भी अभी तक इस तथ्य की पुष्टि नहीं की है कि कोरोना वायरस किसी भी तरह से प्रयोगशाला में तैयार किया गया गई। इस बाबत मिली  सभी जानकारियां इसे नैचुरल या प्राकृतिक वायरस ही बता रही हैं। 

अभी तो मामला वैज्ञानिक जांच से यहीं पर आकर निपट गया लगता है कि कोरोना का वायरस प्रयोगशाला में तैयार किया गया नहीं बल्कि एक प्राकृतिक वायरस है। लेकिन कल्पना की जा सकती है कि  कि अगर भविष्य में कहीं ऐसा कुछ  हो गया तो इस दुनिया का  क्या होगा? ऐसी ही कोशिश अमेरिका ने एक बार तब की थी जब अमेरिका ने इराक पर जैविक हथियार  बनाने के आरोप  लगाए थे और पाने इन आरोपों पर अमेरिका ने इतनी सख्ती और बेरहमी से कारवाई भी की थी कि इराक का सद्दाम हुसैन जैसा धुर अमेरिका विरोधी नायक भी जिन्दगी की जंग हार गया था। ये प्रकरण सभी को आज भी  याद होगा ही। 
दुनिया में जैविक हमले इससे पहले भी कई बार हो चुके हैं। हिटलर के जमाने में यहूदियों पर जो अत्याचार हुए वो भी एक तरह से जैविक हमले का ही मामला था,लेकिन इससे पहले जितने भी जैविक हमले हुए हैं उनका क्षेत्र और अवधि सीमित ही रही है। इसके विपरीत अगर कोरोना वायरस जैसा कोई अप्राकृतिक कहलाने वाला कोई जैविक हमला आज की तारीख में  किसी देश पर हुआ तो उसका असर केवल उसी देश तक सीमित होकर नहीं रहेगा बल्कि भविष्य का ऐसा कोई भी हमला पूरी दुनिया के लिए विनाश ही नहीं सर्व विनाश का कारण भी बनेगा।