
आज मई दिवस है। मई दिवस यानी मजदूरों का दिन। मजदूर या श्रमिक दिवस सुन कर ऐसा लगता है मानों इसका वामपंथी पार्टियों यानी कम्युनिस्ट आन्दोलन से कोई रिश्ता जरूर होगा पर ऐसा कतई नहीं है। इसकी शुरुआत दुनिया के किसी भी कम्युनिस्ट देश से नहीं हुई, चाहे वो रूस, चीन, पूर्वी जर्मनी, उत्तरी कोरिया, विएतनाम या फिर क्यूबा ही क्यों न हो। आश्चर्य करने वाली बात यह है कि जब दुनिया के किसी कोने से वामपंथी आन्दोलन की आहट तक सुनाई नहीं दी थी, तब उस समय के और आज के भी सबसे बड़े पूंजीवादी देश अमेरिका के शिकागो शहर से मजदूर दिवस की शुरुआत हुई थी।
शिकागो अमेरिका का एक प्रसिद्द शहर है और अमेरिका के इस शहर के तार भारत के साथ भी बहुत गहरे से जुड़े हुए हैं। यह अमेरिका का वही शहर है जहां आज से करीब 127 साल पहले 1893 में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद को संबोधित करते हुए भारत को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई थी। विवेकानंद का वह संबोधन इसलिए भी वैश्विक स्तर पर चर्चा के विषय बना था क्योंकि स्वामीजी ने विश्व बंधुत्व की भारतीय परंपरा का पालन करते हुए अपने इस भाषण की शुरुआत ही, “माय ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ़ अमेरिका” जैसे शब्दों से की थी। तब पूरा हाल बहुत देर तक तालियों की गडगडाहट से गूंजता रहा था क्योंकि अमेरिका में बैठे पश्चिमी देशों के लोग यह कल्पना ही नहीं कर सकते थे कि सात समुन्दर पार से आने वाला कोई भारतीय संन्यासी उनको, अपने भाई- बहन के रूप में भी संबोधित कर सकता है।
बहरहाल ! स्वामी विवेकानंद के इस भाषण के बाद पूरी दुनिया में भारत की एक अलग ही छवि बन कर उभरी थी। विवेकनद के इस सम्बोधन के बाद अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के असंख्य देश भारत के और करीब आये क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने भारत के बारे में सात समुन्दर पार फ़ैली तमाम तरह की नकारात्मक सोच को एक सकारात्मक सोच में बदल दिया था।
आज बात मई दिवस की। शिकागो के श्रमिक आन्दोलन के बाद साल के इस दिन (1मई) को पूरे विश्व में ठीक उसी तरह श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा जिस तरह स्वामी विवेकानंद के संबोधन के बाद हिन्दू धर्म को सर्व धर्म समभाव के सहकार के रूप में प्रतिष्ठा मिली थी। सभी धर्मों की इज्जत करने वाला यह सनातन धर्म ही सर्व धर्म समभाव का प्रतीक है।
भारत के सन्दर्भ में देखें तो मजदूर दिवस की एक खासियत इस रूप में भी देखी जा सकती है कि इसी दिन भारत के प्रसिद्द फिल्म कलाकार बलराज साहनी का जन्म भी हुआ था। कहना गलत नहीं होगा कि स्वर्गीय बलराज साहनी को श्रमिकों के श्रम का सम्मान करने की प्रेरणा जन्मजात ही मिली थी। जिस व्यक्ति का जन्म ही श्रमिक दिवस को हुआ हो, वह भला मजदूरों के भाव को, उनके मर्म को, उनकी पीड़ा को क्यों नहीं समझेगा। मजदूर और मजदूरों की चिंताओं को लेकर उनका यह लगाव उनकी फिल्मों के कथानक में ही नहीं बल्कि उनके अभिनय में भी साफ़ देखा जा सकता है।
भारत समेत पूरी दुनिया में इस साल मजदूर दिवस का स्वरुप बहुत कुछ बदला हुआ है। पिछले साल दिसम्बर के महीने में चीन के वूहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस के इस आतंक की वजह से कई महीनों से लॉकडाउन की समस्या से भी दुनिया को कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है। पूरे विश्व में व्यापारिक और औद्योगिक संस्थानों के साथ ही मजदूरों के काम करने के सभी स्थान पूरी तरह बंद हैं। रोजगार न मिलने से कामगार बुरी तरह परेशान भी हैं और उनके भूखों मरने की नौबत तक आ गई है। दुनिया के संपन्न देश तो शायद देर- सबेर इस समस्या से निजात पा लेंगे लेकिन भारत जैसे आर्थिक रूप से कमजोर तीसरी दुनिया के देशों और उनके मजदूरों की हालत कब तक सुधरेगी, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कोरोना का संकट समाप्त हो जाने के चार – पांच महीने के बाद तक आर्थिक अस्थिरता की यह चिंताजनक स्थिति बनी रह सकती है। ऐसे में इन गरीब मजदूरों के जीवन पर इसका क्या असर पड़ेगा, अभी इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
कोरोना के वायरस ने जब अपना असर दिखाना शुरू किया तभी से लॉकडाउन का सिलसिला भी शुरू हो गया था। आधिकारिक रूप से इसे 22 मार्च से शुरू हुआ भी माना जाये तो अब पूरा डेढ़ महीना होने को है। इस दौरान बड़े पैमाने पर रोजगार से विस्थापित हुए भारत के लाखों प्रवासी मजदूर देश भर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकने को भी मजबूर हुए। इसी मजबूरी में इन मजदूरों को दो वक़्त की रोटी, रहने को एक अदद छत और दूसरी न्यूनतम और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी सरकार, स्वैच्छिक संस्थाओं अथवा कुछ लोगों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
देश के अन्दर ही भटक रहे ये मजदूर करें भी तो क्या करें। अपने मूलस्थान छोड़ कर काम की तलाश में दूसरे स्थान पर रह रहे थे लेकिन कोरोना के लॉकडाउन से बंद हुए कारोबार के चलते खाने के भी लाले पड़ गए। जब घर वापसी की सोची तो आने जाने का कोई साधन ही नहीं मिला। अटक गए सब अधबीच। ऐसे लाखों प्रवासी मजदूर तब से दर- दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं। इसे एक सुखद आश्चर्य ही कहा जा सकता है कि मई दिवस की पूर्व संध्या से एक दिन पहले केंद्र की सरकार ने राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श के बाद प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का रास्ता निकाला है।गृह मंत्रालय की इस योजना के अनुसार लॉक डाउन के दौरान देश के अलग- अलग हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों के साथ ही छात्रों, तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को अब अपने घर जाने की इजाजत दे दी जायेगी।
बुधवार 29 अप्रैल 2020 को जारी किये गए इस आशय के आदेश में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने साफ़ किया है कि देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे लोग अब दोनों राज्य सरकारों की आपसी सहमति से राज्य सरकारों की बसों के माध्यम से अपने घर जा सकते हैं लेकिन इसके लिए कुछ अनिवार्य शर्तों का पालन करना जरूरी होगा।