हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी से जुड़ी कथा और शालिग्राम संग तुलसी विवाह का महत्व

शिवांगी गुप्ता शिवांगी गुप्ता
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हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। देवउठनी का अर्थ है, देव का उठना यानि इसी दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों के लिए क्षीर सागर में शयन करने के लिए चले जाते हैं। जिसके पीछे की रोचक कथा हिंदू ग्रथों में वर्णित है।

इसके अनुसार एक दिन माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु से कहती हैं, “हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और अगर सोते भी हैं तो लाखों-करोड़ों सालों तक सोते ही रहते हैं। ऐसे समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें ताकि मुझे भी विश्राम करने का कुछ समय मिल जाए।”

माता लक्ष्मी की बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराते हुए कहते हैं, “देवी! तुमने सही कहा। मेरे इतना जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिल पाता है। इसलिए तुम्हारे कहने पर मैं आज से हर साल के वर्षा ऋतु में चतुर्मास के लिए शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए भी परम मंगलकारी सिद्ध होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।”

जिस वजह से हिंदू धर्म में इस दिन को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन के बाद से किसी भी शुभ काम को नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि इस चार्तुमास में ध्यान, तप और साधना करनी चाहिए। वहीं चार माह पूरे होने के बाद देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। जिस दिन भगवान विष्णु अपनी चीर निद्रा से जागते हैं। इस दिन के बाद से ही हिंदु धर्म को मानने वाले लोग अपने सभी मंगल कामों को करना शुरू कर देते हैं।

इस दिन तुलसी का विवाह करने का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी के पौधे की शादी भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं। इसलिए हिंदु ग्रंथों में इस दिन तुलसी का विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है। शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने वाले व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर भगवान हरि की विशेष कृपा होती है।



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