कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव हरियाणा विधानसभा में गिर गया। मनोहर लाल खट्टर की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार बच गई, खट्टर ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया। कांग्रेस को पता था कि उनके पास संख्या बल नहीं है। लेकिन एक रणनीति के तहत विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।
मनोहर लाल खट्टर भी निश्चिंत थे। उन्हें पता था कि उनकी सरकार नहीं गिरेगी। सरकार बच जाएगी। क्योंक संख्या बल सरकार के पास है। खट्टर को लगता है कि कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी मदद की। राज्य में संदेश गया कि हरियाणा सरकार मजबूत है, विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी से ज्यादा विधायक हरियाणा सरकार के पास है।
सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में 55 विधायक खड़े हो गए। जबकि समर्थन में 32 विधायक ही खड़े रहे। सवाल यही है कि जब काग्रेस को पता था कि सरकार नहीं गिरेगी तो अविश्वास प्रस्ताव किस विश्वास में लाया गया था? कई सवाल उठ रहे है। क्या हुड्डा ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर मनोहर लाल खटटर सरकार की मदद कर दी? क्या हुड्डा ने खट्टर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर यह संदेश दिया कि वे ईडी औऱ सीबीआई की जांच से नहीं डरते?
दरअसल हुड्डा कांग्रेस के नए बने हुए गुट ग्रुप-23 के भी सदस्य है। दरअसल कांग्रेस दवारा खट्टर सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को अलग-अलग नजरिए से विशलेषक देख रहे है। इसके अलग-अलग राजनीतिक मायने निकाले जा रहे है। क्योंकि विधानसभा में सरकार की जीत के बाद खट्टर सरकार का मनोबल बढा है, हालांकि किसानों के बीच खट्टर सरकार का विरोध और तेज होगा।
बेशक मनोहर लाल खट्टर की सरकार बचा ली है, लेकिन खट्टर सरकार की मुश्किलें चंडीगढ़ के सचिवालय से बाहर हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में और बढेगी। किसानों का गुस्सा और बढेगा। यह सच्चाई है कि सत्ता में बने रहने के बावजूद किसानों के विरोध के कारण खट्टर सरकार चंडीगढ़ और पंचकूला तक सीमित हो गई है।
हरियाणा के ग्रामीण इलाको में मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्री किसानों के विरोध के कारण नहीं जा पा रहे है। चंडीग़ढ़ से पंचकूला तक मनोहर लाल खट्टर की सरकार के मंत्री सीमित हो गए है।
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय है कि विश्वास मत हासिल करने के बाद खट्टर सरकार की मुश्किलें और बढे़गी। क्योंकि सरकार के खिलाफ किसानों का गुस्सा और बढ़ेगा। दुष्यंत चौटाला जो सरकार के संकटमोचक बने हुए है उनके प्रति किसानों का गुस्सा औऱ तेज हो गया है।
हरियाणा सरकार के मंत्री इस बात को स्वीकार कर रहे है कि वे अपने इलाकों मे किसानों के विरोध के कारण नहीं जा पा रहे है। सता पक्ष के विधायक भी यह स्वीकार कर रहे है कि वे अपने इलाकों में जा नहीं पा रहे है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री रतन लाल कटारिया ने कहा था कि किसानों के विरोध के कारण विकास कार्य रूक गया है।
हालांकि यह सवाल लगातार उठ रहे है कि आखिर कांग्रेस ने विश्वास मत लाया क्यों जब कांग्रेस को पता था कि संख्या बल सरकार के पास है? कहा जाता है कि कांग्रेस नेता भूपेद्र हुड्डा ने एक तीर से कई शिकार किए है। वे किसानी के मुद्दे औऱ तीन कृषि कानूनों को विधानसभा में चर्चा में लाना चाहते थे। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान तीन कृषि बिलों पर जोरदार चर्चा हुई है।
कांग्रेस को लगता है कि इस चर्चा से हरियाणा के ग्रामीण इलाकों मे कांग्रेस को फायदा मिलेगा। यही नहीं हुड्डा विधानसभा में चर्चा करवा कर भाजपा को पूरी तरह से किसान विरोधी साबित करना चाहते थे। लेकिन उनके मुख्य निशाने पर दुष्यंत चौटाला थे। हुड्डा औऱ दुष्यंत चौटाला दोनो जाट है। दोनों नेता हरियाणा में जाट वोटों की राजनीति करते है। हुड्डा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर दुष्यंत चौटाला को पूरी तरह से एक्सपोज करने में कामयाब हो गए है।
हुड्डा ने दुष्यंत चौटाला को किसान विरोधी साबित कर दिया। हुड्डा को पता था कि दुष्यंत चौटाला सरकार के खिलाफ नही जाएंगे, सता का साथ वे नहीं छोडेंगे। हुड्डा को यह भी पता था कि दुष्यंत चौटाला से बागी हो रहे कुछ विधायक भी अपनी सदस्यता समाप्त होने के डर से खट्टर सरकार का ही साथ देंगे।
दरअसल हुड्डा चाहते थे कि विश्वास मत के दौरान किसी भी कीमत पर दुष्यंत चौटाला सरकार का साथ दे। ताकि उनके खिलाफ किसानों का गुस्सा और भ़ड़के। हुड्डा जाट किसानों में दुष्यंत को जाट विरोधी साबित करने के खेल में लगे हुए थे। उसमें वो कामयाब हो गए हैं।
चौटाला परिवार शुरू से हरियाणा के बांगर इलाके के जाटों की राजनीति करता रहा है। बांगर के जाटों के समर्थन से दुष्यंत चौटाला के कुछ विधायक विधानसभा में पहुंचे है। खुद दुष्यंत औऱ उनकी मां जाट किसानों के समर्थन के कारण ही विधायक बने है। दरअसल हुड्डा चाहते है कि अगले विधानसभा चुनाव तक दुष्यंत चौटाला हरियाणा की राजनीति से पूरी तरह से साफ हो जाए। दुष्यंत के पास शहरी वोट बिल्कुल नहीं है। वे ग्रामीण वोटों की राजनीति करते है जिसमें हरियाणा के कुछ इलाकों के बहुतायत जाट उनका समर्थन करते है।
किसान आंदोलन की शुरूआत होते ही दुष्यंत चौटाला पर किसानों ने सरकार से बाहर निकलने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन दुष्यंत सता के साथ चिपके रहे। अब अब अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मनोहर लाल खटट्रर सरकार का संकट मोचक बन दुष्यंत चौटाला ने यह साबित कर दिया कि उन्हें अपने वोटरों, समर्थकों से ज्यादा सत्ता की मलाई पसंद है। हुड्डा यही चाहते थे, वे अपनी रणनीति में कामयाब रहे है।