
नई दिल्ली। मौजूदा समय में भारतीय दवा उद्योग यहां की अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख योगदान देने वाले उद्योगों में शामिल है। जहां पश्चिमी मल्टी नेशनल कंपनियों का स्वतंत्रता के बाद से ही इस उद्योग पर दबदबा था, वहीं अब प्रमुख-10 कंपनियों में से 9 भारतीय हैं। पिछले तीन दषकों में भारतीय कंपनियों में तेजी के लिए सरकारी नीतियों और उनके द्वारा अपनाई जा रही आक्रामक विपणन रणनीतियां हैं। मल्टी नेशनल कंपनियों और ब्रांडों का भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा अधिग्रहण विभिन्न महत्वपूर्ण एवं प्रमुख रणनीतियों में शुमार है।
मौजूदा समय में कई भारतीय कंपनियों ने तेजी से बढ़ रहे ब्रांड बीटाडिन के अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित किया है। यह भारत में उमेश मोदी गु्रप कंपनी विन-मेडिकेयर के स्वामित्व वाला ब्रांड है। बीटाडिन की बिक्री कोविड के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भी तेजी से बढ़ी है और यह भारत में सर्वाधिक बिक्री वाला छठा दवा ब्रांड बन गया। हालांकि बीटाडिन मौजूदा समय में कई फोर्मुलेशन में उपलब्ध है, लेकिन बीटाडिन गार्गल की मांग तेजी से बढ़ रही है।
विन-मेडिकेयर लिमिटेड के चेयरमैन एवं अध्यक्ष यूके मोदी ने बताया कि, ‘मुझे दो बड़ी भारतीय दवा कंपनियों द्वारा 4,500 करोड़ रुपये की पेशकश की गई है। यह राशि बीटाडिन के सालाना बिक्री कारोबार का करीब 10 गुना है। जुलाई 2015 में, भारतीय दवा कंपनी ल्यूपिन लिमिटेड ने समझौते किए और न्यूजर्सी स्थित जेनेरिक दवा कंपनी गैविस फार्मास्युटिकल्स एलएलसी और नोवल लैबोरेटरीज इंक. (गैविस) का 88 करोड़ डाॅलर के अधिग्रहण पूरा किया। यह किसी भारतीय दवा कंपनी द्वारा अमेरिका में सबसे बड़े अधिग्रहणों में से था।
भारत में फार्मास्युटिकल सेक्टर ने भारतीय स्वतंत्रता के बाद से लंबा सफर तय किया है। स्वतंत्रता के बाद भारतीय दवा उद्योग पर पश्चिमी मल्टी नेशनल कंपनियों (एमएनसी) का दबदबा था और भारत में दवा कीमतें दुनिया में सर्वाधिक थीं। 1970 में, भारतीय संसद ने इंडियन पेटेंट्स ऐक्ट 1970 पारित किया और इसमें प्रावधान किया गया कि सिर्फ फार्मास्युटिकल मोलीक्यूल्स और नई केमिकल इकाइयों (एनसीई) के लिए पेटेंट प्रोसेस करने की ही अनुमति दी जाएगी।