कोरोना- पर्यावरण और जैव विविधता


ई-कॉमर्स और संगठित रिटेल उद्योग के कारण लगातार प्लास्टिक की मांग बढ़ रही है। यहां हर सामान प्लास्टिक पैकेजिंग में बिकता है। इसके अलावा प्लास्टिक की बढ़ती खपत का बड़ा कारण भारत में लोगों की लाइफ स्टाइल बदलने,आय में बढ़ोत्तरी और बढ़ती जनसंख्या है। वहीं ग्रामीण भारत में टीवी और अन्य माध्यम बढ़ने के कारण प्लास्टिक के साथ साथ पैकेजिंग उद्योगों की मांग लगातार बढ़ रही है।



इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से 5 जून को मनाये जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस का उत्साह पूरी तरह से फीका ही पड़ गया। एक तरह से ठीक भी हुआ क्योंकि ऐसे मौकों पर पर्यावरण को बचाने के लिए बातें तो बड़ी – बड़ी की जाती हैं लेकिन व्यावहारिक जीवन में इन बातों पर लेशमात्र भी उपयोग नहीं होता। कोरोना की वजह से पूरी दुनिया दो माह से अधिक समय से लॉकडाउन की गिरफ्त में है। 

सोशल डिस्टेंसिंग के सिद्धांत का अनुपालन करने के क्रम में सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन न करने की विवशता की वजह से भी पर्यावरण दिवस पर क्षेत्रीय,प्रादेशिक,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के किसी भी कार्यक्रम का आयोजन कर पाना संभव भी नहीं था। इसलिए पर्यावरण दिवस का खालीपन एक विवशता भी बनी। इस विवशता के बीच इस बार कोरोना प्रकोप के बीच पर्यावरण दिवस को लेकर एक अजीब किस्म का अनुभव भी हुआ जो एक तरह विरोधाभासी प्रकृति का प्रतीक भी माना जा सकता है।

इस बार पर्यावरण दिवस के मौके पर सिंगल यूज प्लास्टिक के कूड़े का इतना बड़ा अम्बार लग गया कि इससे पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण के जरिये एक नए संकट का सामना करने को मजबूर होना पड़ा। यह समस्या इसलिए भी खतरनाक स्तर पर पहुंच गई क्योंकि लॉकडाउन के चलते प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग करने वाली इकाइयां बंद रहीं। इस वजह से सिंगल यूज प्लास्टिक के कूड़े का ढेर अन्य लोगों के साथ ही सफाई कर्मियों के लिए भीखतरे का सबब बन गया। 

यह सब इसलिए भी हुआ कि आमतौर पर सामान्य दिनों में रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने की हिदायत दी जाती है क्योंकि यह प्लास्टिक दूसरे प्लास्टिक की तुलना में मानव स्वास्थ्य के लिए अधिक खतरनाक माना जाता है। पर कोरोना की माया के चलते इस दौर में इसी खतरनाक सिंगल यूज प्लास्टिक का ही अधिक से अधिक इस्तेमाल करना पड़ा।

अस्पतालों में कोरोना रोगियों का इलाज करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों से लेकर सफाई कर्मियों तथा लॉक डाउन में कुछ रियायतों के साथ खुलने वाली दुकानों और अन्य सार्वजनिक स्थलों में काम पर लगे लोगों को इसी सिंगल यूज प्लास्टिक से बने दस्तानों और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल करने की एक मजबूरी भी है। बड़ी मात्र में इसका इस्तेमाल होने की वजह से इसके  कचरे का ढेर  भी बहुर बड़ा हो गया। 

सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल का आलम यह है कि अब इस प्लास्टिक के बने ऐसे पीपीई किट बाजार में आने की बात भी की जा रही है कि ये इस्तेमाल के बाद तीन दिन के अन्दर खुद ही नष्ट भी हो जाएगा। ऐसे पीपीई किट की कीमत भी मात्र 48 रुपये बताई जा रही है।  

गौरतलब यह भी है कि पर्यावरण दिवस से करीब एक सप्ताह पहले विगत 31 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नियमित रेडियो कार्यक्रम मन की बात में धरती की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण की बात कही थी और यह स्पष्ट किया था कि इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को कम से कम एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए।

जैव विविधता को बचा कर रखने के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी और साल 2020 का विषय ही जैव विविधता का सेलिब्रेशन है। विश्व में करीब 10 लाख प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं। जैव विविधता का हमारी जीविका सुरक्षा में अहम योगदान है। प्रधानमंत्री की इसी बात को आगे बढ़ाते हुए यह कहना समीचीन होगा कि प्लास्टिक और उस पर भी सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल से भी हमारी जैव विविधता को खतरा पैदा हो रहा है।

आज के समय में मानव स्वास्थ्य पर भी जैव विविधता को होने वाले नुक्सान तथा पारिस्थितिकी परिवर्तन के कारण प्रतिकूल असर होता है। संयोग से भारत अभी तक भारत जैव विविधता के मामले में धनी देश है, जहां 60-70 फीसद जैव विविधता पाई जाती है। लेकिन जिस रफ़्तार से हम अपनी गलतियों के चलते जैव विविधता को नुक्सान पहुंचाते जा रहे हैं उससे हमारा अपना ही भविष्य भयंकर खतरे में दिखाई देने लगा है। सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल भी एक तरह से अपने भविष्य को खुद नष्ट करने जैसा ही है लेकिन मजबूरी ऐसी कि कोरोना काल में तात्कालिक रूप से यही सबसे बेहतर विकल्प भी नजर आता है।

प्लास्टिक के उपयोग को लेकर इंडस्ट्री चैंबर एसोचैम और ईवाय नामक संस्था की रिपोर्ट हौरान भी करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में 90 लाख टन प्लास्टिक का उपयोग होता है,जिसे इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। जिसमें गुटखे और शैंपू के पाउच, पन्नी, छोटी बोतलें, स्ट्रॉ, गिलास और कटलरी के कई छोटे सामान शामिल हैं। ये वो प्लास्टिक हैं जिसका दोबारा इस्तेमाल नहीं होता और यही प्लास्टिक प्रदूषण का बड़ा कारण है। 

रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते ई-कॉमर्स और संगठित रिटेल उद्योग के कारण लगातार प्लास्टिक की मांग बढ़ रही है। यहां हर सामान प्लास्टिक पैकेजिंग में बिकता है। इसके अलावा प्लास्टिक की बढ़ती खपत का बड़ा कारण भारत में लोगों की लाइफ स्टाइल बदलने,आय में बढ़ोत्तरी और बढ़ती जनसंख्या है। वहीं ग्रामीण भारत में टीवी और अन्य माध्यम बढ़ने के कारण प्लास्टिक के साथ साथ पैकेजिंग उद्योगों की मांग लगातार बढ़ रही है। 

वित्त वर्ष 2019-20 भारत में पैकेजिंग इंडस्ट्री के 5.15 लाख करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। देश में सबसे ज़्यादा 35 प्रतिशत पैकेजिंग, इसके बाद निर्माण और बिल्डिंग के क्षेत्र में 23,ट्रांसपोर्ट में 8, इलेक्ट्रॉनिक्स में 8, कृषि में 7 और अन्य क्षेत्रों में 19 प्रतिशत प्लास्टिक का उपयोग होता है। भारत में रोज़ 25 हज़ार मीट्रिक टन से ज़्यादा प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। इसमें से 94 प्रतिशत हिस्सा इस तरह के प्लास्टिक का होता है जो आसानी से री-साइकिल हो सकता है। लेकिन 40 प्रतिशत नालियों को जाम करता है। वहीं नदियों को प्रदूषित करता है।