
लोकतंत्र में पत्रकारिता को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद चौथा स्तम्भ माना जाता है। लोकतंत्र के पहले तीन स्तम्भों को तो संवैधानिक मान्यता प्राप्त हैं लेकिन पत्रकारिता यानी प्रेस अथवा मीडिया को लोकतंत्र के ये तीनों ही संविधान प्रदत्त स्तम्भ के रूप में स्वीकार करते हैं। क्योंकि मीडिया समाज और सरकार, समाज, न्यायपालिका तथा समाज और विधायिका के बीच एक सेतु की भूमिका का निर्वाह करता है।
जनता और समाज को सरकार,अदालत और संसद का सच बताना मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है। यह सच कड़वा भी हो सकता है और मीठा भी। कहने का मतलब है कि अगर सरकार, विधायिका और अदालत समाज के हित में कुछ अच्छा काम कर रहे हैं तो इसकी जानकारी भी मीडिया को देनी चाहिए। इसके विपरीत अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था के ये तीनों प्रतिमान कुछ ऐसा करते हैं जिससे जनहित पर कुठाराघात हो रहा हो तो यह जानकारी भी मीडिया को देनी होगी।
इसके साथ ही मीडिया की एक जिम्मेदारी यह भी बनती है कि यदि समाज की कोई संस्था, व्यक्ति अथवा समूह समाज के ही किसी व्यक्ति अथवा समूह का किसी भी रूप में सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और सांस्कृतिक शोषण कर रहा हो तो उसकी जानकारी भी सबके सामने रखे। इस तरह निष्पक्ष और “ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर” का भाव अपनाते हुए जो समाज के हित में है उसे उजागर करना ही प्रेस या मीडिया की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
इसी वजह से उसे लोकतंत्र का चौथा प्रहरी या स्तम्भ भी कहा जाता है। मीडिया से जुड़े किसी व्यक्ति अथवा संस्थान को किसी तरह की राजनीतिक विचारधारा से निर्लिप्त होने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। मीडिया का कोई भी व्यक्ति किसी पार्टी की विचारधारा का समर्थक या विरोधी हो सकता है लेकिन मीडियाकर्मी का किसी पार्टी को समर्थन करने या विरोध करने का मतलब यह नहीं हो सकता कि वो उस पार्टी या विचारधारा विशेष का अंध भक्त या विरोधी हो जाए।
पत्रकार को सूचनाओं और जानकारी की रिपोर्टिंग करते समय इस तरह की व्यक्तोगत पसंद नापसंद को अलग ही रखना चाहिए। हाँ यह बात अलग है कि जब पत्रकार को किसी नीतिगत विषय पर अपना विश्लेषणात्मक आलेख लिखना हो या फिर किसी सम्मलेन में भाग लेना हो तब वह अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति कर सकता है। दुर्भाग्य से आज हमारा पत्रकार समाज मुद्दों को लेकर कम पार्टी, सरकार और राजनीतिक नेतृत्व की पक्षधारिता को लेकर अधिक चिंतित रहता है।
मीडिया का एक तबका केवल सरकार की तारीफ़ में ही सब कुछ कहना चाहता है। बद्किस्मती से मीडिया के इसी तबके का आज बहुमत है। दूसरी तरफ मीडिया का जो तबका सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की चूक को जनता के सामने रखना चाहता है उसे देशद्रोही निरुपित करने में भी समय नहीं लगता। मीडिया को कहीं न कहीं तो सरकार या व्यवस्था की खामियों को उजागर करना ही चाहिए पर ऐसा हो नहीं पा रहा है। इन विचित्र परिस्थितियों के चलते आज देश का पत्रकार वर्ग साफ़ तौर पर सत्ता समर्थक और सत्ता विरोधी दो ख़ास वर्गों में बंटा हुआ नजर आता है।
पत्रकार बिरादरी के इस तरह के विभाजन का फायदा राजनीतिक दलों के नेता अपने राजनीतिक हितों के लिए उठाने से परहेज नहीं करते जिसकी वजह से कभी केद्र अथवा राज्य में सत्तरूढ़ कोई पार्टी किसी एक पत्रकार को अपना मोहरा बना लेती है तो कभी विपक्षी पार्टी भी इसमें शामिल हो जाती है। देश के ज्यादातर टीवी चैनल और समाचार पत्र जिस तरह सरकार का गुणगान करने में लगे हैं उससे ऐसा लगता है कि ये तबका आज भी चारण युग को जिन्दा रखे हुए है।
निष्पक्ष रिपोर्टिंग तो जैसे गायब ही हो गई है। सभी एजेंडा पत्रकारिता कर रहे हैं। हाल के दिनों में अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ को लेकर जो चर्चा हो रही है उसके मूल में पत्रकारिता का यह विभाजन ही एकमात्र कारण है। अर्नब गोस्वामी वैचारिक रूप से शून्य हैं और कुछ साल पहले ही केंद्र और देश के कई राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी के संपर्क में आये हैं इसलिए उनको इस पार्टी और सरकार में तमाम खूबियां नजर आती हैं और विपक्ष एकदम खोखला नजर आता है।
इसी अंतर्विरोध के चलते वो ऐसे पत्रकार बन जाते हैं जो सरकार की गलतियों के लिए भी विपक्ष से सवाल करने लग जाते हैं और जब विपक्ष से सवाल करते-करते वो इस पार्टी के नेतृत्व पर व्यक्तिगत आक्षेप करने लगते हैं तब वह यह भी भूल जाते हैं कि विपक्ष की वह पार्टी एक राज्य में सरकार चला रही है और इस तरह वो विपक्ष के निशाने पर आ जाते हैं।
उधर विनोद दुआ केंद्र और हिमाचल प्रदेश में सत्ताररूढ़ पार्टी के निशाने पर इसलिए आ जाते हैं क्योंकि वह भी इस पार्टी का गुणगान करने वाले पत्रकारों की जमात में नहीं हैं। अजीब बात है कि वैचारिक पत्रकारों की लड़ाई को मिल कर लड़ने वाले एनयूजे और आईऍफ़डब्ल्यूजे जैसे संगठन भी सक्रिय नहीं हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। तमाम तरह के वैचारिक मतभेदों के बावजूद पत्रकार संगठन पत्रकारों की लड़ाई मिल कर लड़ा करते थे आज पत्रकार खांचों में बंट गए हैं।