
ये साल कुछ मनहूसियत भरा सा है। खासकर साहित्य, कला, फिल्म, संगीत और नृत्य के क्षेत्र की हस्तियों के संदर्थ में यह बात ठीक ही नजर आती है। इन क्षेत्रों की कई हस्तियां इस साल एक-एक कर यह दुनिया छोड़ कर हमेशा के लिए बिछुड़ गईं। हाल के ही दिनों में इरफ़ान खान, ऋषि कपूर और सुशांत सिंह राजपूत जैसे विलक्षण फ़िल्मी कलाकारों के साथ ही महान कोरियोग्राफर सरोज खान भी हमेशा-हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़ कर चले गए। जाने वालों की फेहरिश्त काफी लम्बी है और इन पर काफी कुछ लिखा भी जा चुका है।
आज चर्चा सरोज खान की। कहना गलत नहीं होगा कि धर्मनिरपेक्ष भारत में धर्म निरपेक्षता की मिसाल बनी इस महान कलाकार के जाने से नृत्य- संगीत के क्षेत्र में एक ऐसे शून्य ने जन्म ले लिया है जिसकी भरपाई आने वाले कई दशक में भी संभव नहीं दिखाई देती। सरोज महज एक नृत्यांगना या नृत्य निदेशक ही नहीं थी बल्कि उन्होंने कला के साथ ही अपने जीवन में सामाजिक सरोकारों और सामाजिक दायित्वों का भी जिम्मेदारी के साथ निर्वाह किया था। 22 नवम्बर जन्म 1948 को जन्मी इस महान कलाकार ने 3 जुलाई 2020 को हृदयाघात के चलते मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। उन्होंने अपने करियर में 200 से भी अधिक फिल्मों में काम किया।
भारतीय फिल्म उद्योग में नृत्य के क्षेत्र की एक नामचीन हस्ती रहीं सरोज खान विगत 17 जून से मुंबई के बांद्रा में स्थित गुरु नानक हॉस्पिटल में भर्ती थीं। उन्हें सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद यहां भर्ती कराया गया था। 2 और 3 जुलाई की मध्य रात्रि में निधन के बाद 3 जुलाई को मुंबई के मलाड स्थित मुस्लिम कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। अपने 40 साल के डांस करियर में सरोज खान ने 2000 से अधिक गानों की कोरियॉग्राफी करने का रिकॉर्ड बनाया है।
सरोज खान का फ़िल्मी और डांस का जीवन तो एक तरह से सुखदाई ही रहा। इसी वजह से उनको अपने काम से नाम और सोहरत भी खूब मिली लेकिन उनका निजी जीवन उथल- पुथल से भरा रहा है। सरोज खान ने दो शादियां की थी। उनका पहला विवाह तो 13 वर्ष की छोटी से उम्र में ही हो गया था और उनकी दूसरी शादी बहुत साल बाद हुई थी। सरोज खान, हामिद, हिना और सुकन्या नामक तीन बच्चों की मां थीं। उन्होंने पहली शादी उनसे उम्र में 28 साल बड़े शख्स के साथ की थी।
निजी जीवन की परेशानियों को उन्होंने अपने फ़िल्मी जीवन में कभी भी हावी नहीं होने दिया।1974 में पहली बार सरोज खान ने फिल्म, “गीता मेरा नाम” के गानों की कोरियोग्राफी से अपने करियर की शुरुआत की थी। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फिल्म क्षेत्र में उन्होंने कई नए मुकाम हासिल किये। अपने क्षेत्र में उन्होंने कुछ ऐसे काम भी किये जिससे उनकी नृत्य विधा के क्षेत्र में एक सर्वथा अलग और नई पहचान भी बनी और वैश्विक पटल पे सरोज खान को। “मदर ऑफ़ डांस कोरियोग्राफी इन इंडिया” यानी भारत में डांस कोरियोग्राफी की मां जैसे खिताब से भी नवाजा जाने लगा था। बाद के वर्षों में सरोज खान को फिल्म नगीना (19 86)’,मिस्टर इण्डिया (1987) तेज़ाब (1988),और चांदनी (1989) के गानों की कोरियोग्राफी से भी बहुत सोहरत मिली थी।
सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल था और 13 साल की निर्मला का उससे 28 साल बड़े जिस अधेड़ व्यक्ति से विवाह हुआ था उसका नाम बी सोहन लाल था। सोहन लाल निर्मला उर्फ़ सरोज से न केवल उम्र में बड़े थे बल्कि यह उनकी दूसरी शादी भी थी और पहली शादी से उनके बच्चे भी थे। सरोज खान को इस सच्चाई का पता तब चला जब सरोज और सोहन के सात बच्चे हो चुके थे और सोहन लाल ने इन बच्चों को अपना नाम देने से इनकार कर दिया था। सोहन लाल द्वारा बच्चों को नाम न देने की एक वजह यह भी बताई गई कि इस शादी के लिए सरोज खान ने इस्लाम धर्म अपना लिया था। बात मालूम चली। यह शादी अधिक समय तक टिक नहीं सकी और दोनों ने अपने अलग-अलग रास्ते पकड़ लिए थे।
सोहन लाल से अलग होने के बाद सरोज खान ने सरदार रोशन खान से शादी की थी। सरोज खान को कोरियोग्राफी के लिए सम्मान भी मिले और पुरस्कार भी लेकिन उनको एक मलाल हमेशा रहा कि फिल्म के जिस गाने की रीमिक्सिंग के लिए माधुरी दीक्षित को जितनी सोहरत मिली उतनी सोहरत उन्हें उसी गीत की मूल कोरियोग्राफी में नहीं मिल सकी थी। जहां तक उनको मिले अवार्ड का सवाल है, इस बारे में साल 2003 में रिलीज हुई फिल्म देवदास के गीत ‘डोला रे डोल के लिए उनको मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार उनके लिए बहुत अहम था। इसके अलावा साल 2006 में आई फिल्म ‘श्रीनगरम’ के सभी गानों और साल 2008 में आई ‘जब वी मेट’ के लिए यह इश्क हाए के लिए भी उनको नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था।