मौसम नदी और हम


दुनिया की हर सभ्यता नदियों के किनारे ही उत्पन्न और विकसित हुई है। नदियां इंसान की जीवन रेखा हैं। जिस जमाने में लम्बी दूरी तय करने के लिए यात्रा का एकमात्र साधन जल परिवहन ही हुआ करता था, उस समय दुनिया की सभी संस्कृतियां भी नदियों के किनारे ही विकसित हुई थीं। यही वजह है कि दुनिया के सभी प्रमुख शहर भी नदियों के किनारे ही बसे हैं।



भारत में मौसम बदल रहा है गर्मी के मौसम की विदाई के साथ मानसून ने भी दस्तक दे दी है। हमारे यहां मानसून का मतलब केवल बारिश नहीं होता बल्कि बारिश के बाद जब तक बाढ़ नहीं आती पता ही नहीं चलता कि मानसून आ गया है। बाढ़ तो मानसून का मौसम ख़त्म हो जाने के काफी बाद तक परेशानी का सबब बनी रहती है बारिश होने के समय बदइंतजामी के चलते जब शहरी इलाकों में बंद नालियों का गंदा पानी सडकों के साथ ही घरों में जमा होने लगता है तब लगता है मानसून आ गया। इसके अलावा पहाड़ी इलाकों में सड़क के धंसने, एक पूरे पहाड़ के गिर जाने, बादल फटने या फिर कृत्रिम झील बन जाने और उसके टूटने के बाद होने वाले प्राकृतिक हादसों का सिलसिला शुरू होता है तब हम मानसून के मिजाज को समझने की कोशिश भर करते हैं। 

इंसान गलती खुद करता है और हादसों के दोष प्रकृति पर मढ़ देता है। बात जब इंसान, मौसम और प्रकृति की हो तो इस पूरे सन्दर्भ में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका भी होती है कहना गलत नहीं होगा कि नदियां इंसान की सांस्कृतिक पहचान भी हैं। दुनिया की हर सभ्यता नदियों के किनारे ही उत्पन्न और विकसित हुई है। नदियां इंसान की जीवन रेखा हैं। जिस जमाने में लम्बी दूरी तय करने के लिए यात्रा का एकमात्र साधन जल परिवहन ही हुआ करता था, उस समय दुनिया की सभी संस्कृतियां भी नदियों के किनारे ही विकसित हुई थीं। यही वजह है कि दुनिया के सभी प्रमुख शहर भी नदियों के किनारे ही बसे हैं।

विश्व की जितनी भी सभ्यताए अब तक ज्ञात हैं, वो सभी किसी न किसी नदी के किनारे ही विकसित हुईं हैं चाहे वो सिन्धु नदी के किनारे विकसित हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता हो या फिर नील नदी के किनारे विकसित और इसी नदी का वरदान समझी जाने वाली मिस्र की सभ्यता ही क्यों न हो। प्रसंगवश संस्कृतियों के विकास में नदी या नदियों की भूमिका को इस बात से अच्छी तरह से समझा जा सकता है। विश्व के चार देशों की राजधानियां बुडापेस्ट (हंगरी), बेलग्रेड (सर्विया), वियना (ऑस्ट्रिया) और ब्रातिस्लावा (स्लोवाकिया) सभी एक ही डेन्यूब नदी के किनारे बसी हैं।

इस मुद्दे पर चर्चा का मुख्य मकसद इतना ही है कि हिंदुस्तान में जब पूर्वोत्तर के राज्य असम से बाढ़ की ख़बरें आने लगती हैं तब हमें अहसास होता है कि देश में मानसून यानी बारिश का कहर शुरू हो गया है। असम के साथ ही बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश समेत कई और राज्य भी हर साल बाढ़ की विनाश लीला का सामना करते हैं। मजेदार बात यह है कि बाढ़ से परेशान होने वाले देश के ज्यादातर राज्य वो हैं जहां बरसात तो कम होती है लेकिन देश के दूसरे राज्यों और पड़ोसी देश नेपाल में होने वाली बरसात का पानी बह कर इन राज्यों में जमा होकर बाढ़ की त्रासदी पैदा कर देता है। 

हम हर साल बहुत मगन होकर बाढ़ की इस त्रासदी का इन्तजार ही नहीं करते बल्कि अपनी तरफ से कुछ ऐसे काम भी करते रहते हैं जिससे प्रकृति को नाराज होने का मौका भी मिल जाता है और बाढ़ के साथ ही दूसरी ऐसी बड़ी घटनाएं भी अक्सर होती रहती हैं जिनको कभी मालपा हादसा तो कभी केदारनाथ त्रासदी, कभी केरल की बाढ़ तो कभी अमरनाथ दुर्घटना तो कभी कुछ और नाम मिल जाता है। इन हादसों को ये नाम यूं ही नहीं मिल जाते बल्कि इंसानी गलती की वजह से ये हादसे वास्तव में होते ही रहते हैं।विकास के नाम पर इंसान जब प्रकृति के अस्तित्व को चुनौती देने लगता है तब वो अनजाने में ही प्राकृतिक हादसों को निमंत्रित कर चुका होता है। 

हमको नदियों को साफ़ रखने का पाठ तो पढ़ाया जाता है लेकिन पहाड़ों में हां नदी के किनारे-किनारे सड़क बनाने और सड़क में भवन निर्माण कार्य कर नदी किनारे के उस पूरे पहाड़ को खोखला कर देते हैं। ऐसा खोखला पहाड़ तेज वर्षा में तो गिरेगा ही, मैदानी इलाकों में नदियों से गाद निकालने का काम किया जाना चाहिए लेकिन हम गाद निकालने के बजाय मल-मूत्र समेत अपना पूरा कचरा नदियों में प्रवाहित कर उसकी सतह को दिन पर दिन और ऊंचा करते जाते हैं। ऐसे में बरसात का पानी बह कर आबादी में जाएगा ही और जब आबादी में नालियों की समय पर सफाई नहीं होगी तो मैदानी इलाकों में बाढ़ भी आयेगी और नदियों का गन्दा पानी भरने से मलेरिया, डेंगू, चिकन गुनिया जैसी बीमारियां भी जरूर फैलेंगी। इस तरह नदियों का अपमान कर हम एक तरह से युगों पूर्व वजूद में आई अपनी संस्कृतियों को ही समाप्त करने में लगे हैं।

दुनिया की ख़ास नदियों की जानकारी भी दिलचस्प होगी। बात नील नदी से शुरू करें तो कह सकते हैं कि अफ्रीका महाद्वीप की यह नदी जिसे नाइल नदी भी कहा जाता है मिस्र, सूडान और यूगाण्डा स्थित विक्टोरिया झील भूमध्य सागर से होकर बहने वाली दुनिया की सबसे लम्बी नदी है जो अपने उद्गम स्थल भूमध्य रेखा के निकट से लेकर सागर में समाने तक 6,690 किलोमीटर तक की दूरी तय करती है। इसी तरह 6296 किलोमीटर का सफ़र तय कर दक्षिणी अमेरिका, ब्राज़ील, कोलंबिया, पेरू, वेनेज़ुएला, लैगो, विलफेरो जैसे देशों में पहुंचती है।

भारत के सन्दर्भ में चर्चा करें तो गंगा और ब्रह्मपुत्र इस देश की दो सबसे बड़ी नदियां हैं। गंगा अपनी लम्बाई की वजह से सबसे बड़ी नदी है तो ब्रह्मपुत्र अपने चौड़े पाट की वजह से देश की सबसे बड़ी नदी कहलाती है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी के एक तट से दूसरे तट को देख पाना संभव नहीं होता। इस नदी का पाट इतना चौड़ा होता है कि इसके बीच-बीच में कई टापू उभर कर सामने आ जाते हैं। पाट चौड़ा होने की वजह से इस नदी की गहराई कम हो जाती है और बरसात का पानी आने पर पानी नदी से बाहर निकल कर बाढ़ का कारण बनता है। एशिया महाद्वीप की यह नदी चीन, भारत और बांगला देश के क्षेत्र में 2,900 किलोमीटर का सफ़र तय कर बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। 

उधर गंगा भी उत्तर भारत में गोमुख से निकल कर बंगाल की खाड़ी में ही समाहित होती है। उत्तराखंड में अपने उद्गम स्थल से निकल कर बंगाल की खाड़ी में समाहित होने वाली गंगा को बांगला देश में पद्मा नदी कहा जाता है। अपने उद्गम स्थल से बंगाल की खाड़ी में समाहित होने वाली भारत की यह सबसे बड़ी नदी उत्तराखंड   के साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल राज्यों से होते हुए 2, 525 किलोमीटर का सफ़र तय करते हुए बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। भारत में बाढ़ की त्रासदी के लिए गंगा और ब्रह्मपुत्र को ही ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है।