
दीपक द्विवेदी
‘यतो धर्मः ततो जयः’ … राष्ट्र को महासंकट से उबारने के लिए विदुर और चाणक्य नीति से लेकर भारतीय सिद्धांतों और पौराणिक मान्यताओं का यह एक अमोघ शक्तिशाली सूक्ति वाक्य है। हम ये भी कह सकते हैं कि ये संकट से उबारने का एकमात्र अहिंसक रास्ता है। सच तो ये है कि धर्म, किसी जाति, मजहब, सम्प्रदाय या कौम से ताल्लुक नहीं रखता। क्योंकि समूची दुनिया में सभी सम्प्रदायों और आस्थावानों का एक ही धर्म होता है कि: सुरक्षित रहो, साक्षर रहो, सहृदय रहो, समर्थ रहो, सहायतावान और सुखी रहो। राष्ट्र धर्म से लेकर राज धर्म और प्रत्येक देशवासी का जन धर्म भी यही निर्देश देता है कि जन कल्याण से जग कल्याण की ओर सदैव अग्रसर होते रहें। दरअसल, यही हर व्यक्ति की तरक्की की पुख्ता बुनियाद होती है। चाहे देश हो, प्रदेश या परिवार हो या फिर पंचायत हो … सभी व्यवस्थाएं तभी विकसित और कामयाब होंगी, जब आप सफलता के सभी गुणों (साक्षर, समर्थ, सहृदय, शालीन, और सहायतार्थ बने रहें) से परिपूर्ण होते हैं।
यह कहने में शब्दों की भारी कमी पड़ रही है कि भारत के ख्यातिप्राप्त प्रधानमंत्री ने कोरोना की वैश्विक महामारी पर कड़ाई से काबू पाने के लिए जिस तरह से राज धर्म और राष्ट्र धर्म निभाया है, वह न केवल बेमिसाल है, बल्कि इसने समूची दुनिया के लिए एक नजीर पेश करने के साथ ही एक नए इतिहास को भी जन्म दिया है। दिन के उजाले की तरह सच्चाई की यह तस्दीक करती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च से आज तक के अपने राष्ट्र के नाम तीन संबोधनों में प्रमुखता से उन्हीं बातों को बार-बार दोहराया है, जो केवल रामायण, गीता, बाइबिल, कुरान और गुरुग्रंथ साहिब में मानव और मानवता के कल्याण के लिए दिखाए गए जीवंत दिशा निर्देश हैं।
सच तो यह है कि हमारे देश के हर एक व्यक्ति और उससे जुड़े परिवार ने, वे चाहे हिंदू हों, या मुस्लिम, सिख हों या फिर ईसाई या किसी भी मत के आस्थावान देशवासी हों, प्रधानमंत्री की कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही देशव्यापी जंग में न सिर्फ दिल-ओ-जान से साथ दिया है, बल्कि पूरे हौसले, संकल्प अनुशासन और संयम के साथ सौ फीसदी संकल्पित महा सहयोग दिया है।
हिंदुस्तान का इतिहास साक्षी है कि हिंदुस्तानियों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए इतना बड़ा संगठित और संयमित समर्पण इससे पहले कभी नहीं किया। महामारी के महासंकट को खत्म करने की इस जंग में देशवासियों की इस तरह की महाएकता का महिमामंडन सारी दुनिया में खुलेआम हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र और कॉमनवेल्थ जैसी संस्थाओं के कद को भी बौना साबित करते हुए विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों से इस महाजंग को जीतने के लिए न केवल बारंबार बातचीत की है, बल्कि उनका हौसला भी बढ़ाया है। दरअसल, इसी का नतीजा है कि भारत के अदम्य साहसी और जगकल्याण के लिए जुझारूपन से जुटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका और ब्रिटेन ही नहीं, आज सारी दुनिया के देशों ने अपना सर्वश्रेष्ठ अगुआ माना है।
देशवासी साक्षी है कि मजबूत इच्छाशक्ति से सराबोर और शक्ति, साहस और संयम के पर्याय बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने देश के हर व्यक्ति और परिवार को मौत के मुंह में जाने से बचाने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। वे हमेशा कहते हैं कि मैं प्रजा का प्रधान सेवक व चौकीदार हूं। इस मौके पर उन्होंने देश और जनता की भरपूर सेवा करके यह साबित भी कर दिया। प्रधानमंत्री ने नागरिकों की हर पल उन्होंने हौसला अफजाई करते हुए कहा कि कोरोना युद्ध में विजय का संकल्प लें और लंबी लड़ाई के लिए सभी बंधन स्वीकारें।
निःसंदेह भारतवर्ष एक होकर यह लड़ाई लड़ रहा है। इसमें कोई भी अकेला नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग ही इस कोरोना रूपी जंग का रामबाण इलाज है। कोरोना के योद्धा, देशवासियों के जीवन को बचाने के लिए बेहद कठिन परिस्थितियों और अपनी जान को जोखिम में डालते हुए दूसरों की सेवा करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। प्रधानमंत्री ऐसे योद्धाओं को राष्ट्र रक्षक के नाम से पुकार कर उनके मनोबल को बढ़ाने के लिए लगातार यही कह रहे हैं कि जनता-जनार्दन ईश्वर का ही रूप है। इसी कड़ी में देशवासियों की विराट महाशक्ति ने पूर्ण भव्यता और दिव्यता के साथ अपने राष्ट्ररक्षक के रूप में कार्य करने वाले डॉक्टरों, नर्सों, पुलिस एवं सेना कर्मियों, पत्रकारों, अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों एवं आवश्यक सेवा कार्यों में लगे सभी सेवादारों के प्रति संपूर्ण कृतज्ञता अर्पित की।
अब गंभीर विषय पर आते हैं कि भारत में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में सुर और असुरों, देवों और दानवों से जुड़ी अनगिनत पौराणिक कथाएं हैं, जिनका प्रमाणित सार समझाता है कि राक्षसों, दानवों, असुरों, दरिंदों और जालिमों का इलाज सिर्फ संहार ही है। लेकिन कायदा कानून से। धर्मग्रंथ बड़े से लेकर छोटे तक। हनुमान चालीसा से लेकर बजरंग बाण और अयातुल कुर्सी तक। सभी का मत समान है। तमोगुणी तंत्र को नेस्तनाबूत करने के लिए रजोगुणी और सतोगुणी का समागम जरूरी है। अयोध्या का देवासुर संग्राम भी भारतवर्ष की धरती पर हुआ एक ऐतिहासिक पौराणिक प्रमाण हैं कि वहां पर दैत्यों और राक्षसों के संहार के लिए देवताओं के आह्वान पर राजाओं ने उनकी मदद की और समाज के लिए खतरा बनी सभी राक्षसी शक्तियों का समूल संहार किया था।
आपको याद रखना होगा कि सांप और सपोले सिर्फ जहर ही पैदा करते हैं। उन्हें जिस रूप में भी दूध पिलाया जाएगा ( धार्मिक, सामाजिक, या तांत्रिक) वे हर पल, और जहीरीले होते जाएंगे। सांप पालने वालों को, सांप को दूध पिलाने वालों को या जो सांपों और उसके सपोलों का सौदागर नहीं हैं, वे भी उसके काटने से मरेंगे। यह ध्रुव सत्य है।
देश में कुछ समय पहले तक कुल मिलाकर कोरोना काबू की स्थिति में था। कोरोना को जड़ से खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री के देशबंदी की अपील का हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई समेत सभी धर्मों के लोग पूरी शिद्दत के साथ सहयोग कर सौ फीसदी पालन करते रहे हैं। हमारा भाईचारा, सौहार्द और कौमी रिश्ते नए भारत का इतिहास लिखने की तैयारी में थे। लेकिन इसी बीच हमारे शालीन समाज के कुछ जालिम दरिंदों और षड़यंत्रकारियों ने कोरोना महामारी के कहर को और ज्यादा बेरहम बना दिया। खबरों की मानें, तो यह जाहिल और राक्षसी रूप लिए तबलीगी समाज के ये सिरफिरे शैतान, मानव बम के रूप में कोरोना ग्रसित होकर, देश के विभिन्न हिस्सों में मौत की तबलीगी बांटने में जुट गए। इन जाहिल और जंगली दरिंदों ने खामोशी के साथ अपनी कौम की पीठ में ही पीछे से गहरा और खतरनाक खंजर भोंककर उनका पहला खैर मकदम किया है। इससे संपूर्ण मुस्लिम समाज पर एक सवालिया निशान लगाने की साजिशी बू आ रही है।
दरअसल, ये सिरफिरे और शातिर तबलीगी, पहले तो अपनी ही कौम का कत्ल करने में जुट गए। इन कातिलों ने पवित्र मस्जिदों को नापाक कर दिया। विपत्ति काल में घर से नमाज अता कर रहे देशभक्त मुसलमानों की इस तपस्या को भंग कर दिया और अपनी ही कौम की धज्जियां उड़वा दीं। क्या यही है तबलीगी समाज का संदेश? देश जवाब चाहता है कि क्या मौत के सौदागर बन बेगुनाहों को मौत के मुंह तक पहुंचाना ही तबलीगी शिक्षा है? मेरे दोस्त, नसीहत तो ये है कि तबलीगी समाज के लोग अपनी कौम की सूरत बिगाड़ना बंद करें।
कुरान और शरीयत साफ-साफ कहती हैं कि मुसलमानों! अपने रहनुमा की हर बात मानो। मालूम रहे कि कुरान इतनी पवित्र और प्रेरणादायक शिक्षा देती है कि यदि नमाज पढ़ते वक्त खतरा आ जाए, तो पहले खतरों से बचो और फिर नमाज पढ़ो। जिस मजहब में जकात और भूखे के भोजन देने को सबसे अहम फेहरिस्त में रखा गया है और हिदायत दी गई है कि भूखों को खाना खिलाते समय कभी उसकी जाति मत पूछना।
इंसानियत से सराबोर ऐसे धर्मग्रंथों की मान्यताओं और परंपराओं को इन मुट्ठीभर जालिम और कातिल की शक्लधारी तबलीगियों ने जमकर रौंदा और कुचला है। यही हरकत इन राष्ट्रद्रोही बदमाशों ने अपने रहनुमा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशबंदी की हिदायतों के साथ भी की है। ऐसे में जरूरत सिर्फ इस्लाम के उस सख्त संदेश को अमल में लाने की है। जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि कत्ल की सजा कत्ल है, लेकिन कायदे कानून से।
देश के रहनुमा की हिदायतों को बेखौफ रौंदने वाले इन जाहिल बेरहम दरिंदों को कानून के दायरे में ऐसी नसीहत भरी सख्त सजा मिलनी चाहिए, जो उनके कत्ल के इल्जाम को अहसास कराते हुए उनकी नस्लों के भी रोंगटे खड़े कर दे। ताकि भविष्य में कोई भी इंसान ऐसी नापाक और घिनौनी हरकतें करने की जुर्रत तक न कर सके।
दरअसल, इस्लाम की नसीहत ही खुदा की आवाज है और उसमें साफ कहा गया है कि “मेरे गुनाह तो मैं माफ कर दूंगा, लेकिन मेरे बंदे के गुनाहों को मैं माफ नहीं कर सकता”। इंसानियत से भरे अलग-अलग धर्मों और सम्प्रदायों के ऐसे धार्मिक ग्रंथों को नमन है भारतवासियों का।
मेरे दोस्तों ! अंत में अपील सिर्फ इतनी है- उठो, जागो और तब तक प्रधानमंत्री के जंगी मोर्चे पर राष्ट्ररक्षक के रूप में डटे रहो, जब तक कोरोना की इस जंग को जीत न लो।
(दीपक द्विवेदी दैनिक भास्कर के चेयरमैन एवं प्रधान संपादक हैं।)