प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद मंगल पांडे का क्या है बागी बलिया से नाता


शहीद मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ग्राम नगवा में19दिसंबर1828को हुआ था।इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी पाण्डे था। मंगल पाण्डे10मई1849को21वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में सिपाही के ओहदे पर भर्ती हुए थे।



अजीत मिश्रा

भारत का इतिहास शूरवीरों से भरा है, लेकिन देश के इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद मंगल पांडे का एक अलग ही स्थान है। एक ऐसा वक्त जब भारतीयों को अपने ऊपर से गुलामी के कूप अंधेरे के छंटने की कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही थी ऐसे समय में मंगल पाण्डे के उदय ने भारतीयों में एक उम्मीद की एक नई रोशनी पैदा कर दी। भारत में राणा प्रताप से लेकर लक्ष्मीबाई और चंद्रशेखर आजाद व सुभाष चंद्र बोस सहित महात्मा गांधी का अपना स्थान है, लेकिन ऐसे समय जब पूरी दुनिया में अंग्रेजी हुकुमत अपने सवाब पर थी एक सिपाही का अंग्रेजी हुकूमत को ललकारना अपने आप में बड़ी घटना थी। यही कारण रहा था कि मंगल पाण्डे के शहादत की आग पूरे भारत में फैल गई और जिसने भारत में अंग्रेजी हुकूमत की जड़ो में मट्ठा डाल दिया। 

शहीद मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ग्राम नगवा में 19 दिसंबर 1828 को हुआ था। वहीं कुछ इतिहासकार इनका जन्म स्थान फैजाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी पाण्डे था। मंगल पाण्डे 10 मई 1849 को 21 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में एक सिपाही के ओहदे पर भर्ती हुए। उनकी पहली तैनाती अंग्रेजी सेना के आधुनिक पश्चिम बंगाल यूनीट के 34वीं नेटिव इन्फेन्ट्री रेजीमेंट बैरकपुर में की गई। मंगल पांडे काफी स्वस्थ और गठीले शरीर के थे और अपनी बहादुरी, साहस व गंभीरता के लिए जाने जाते थे। यही कारण था कि वे सेना में एक अच्छे सैंनिक के रूप में सभी लोगों के बीच शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गए। 

ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार इस विद्रोह का प्रमुख कारण अंग्रेजी सेना की नई बंदूके थी। सिपाहियों को पैटन्न 1843 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस बंदूक के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नई एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। इस कारतूस को पानी की सीलन से बचाने के लिए इसके बाहरी आवरम में चर्बी होती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।

जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल के अनुसार मंगल पाण्डे 21 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला करके उसे घायल कर दिया। जनरल जान के अनुसार सिपाही शेख पलटू को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। बाद में मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा, लेकिन किसी के साथ नहीं देने पर निराशा में उन्होंने खुद को गोली मारकर घायल कर लिया। बाद में  6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और आज ही के दिन अर्थात 8 अप्रैल को उन्हें फांसी दे दी गयी।
मंगल पांडे की यह शहादत अब रंग लाने लगी और इसी का परिणाम था कि मात्र एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में स्वतंत्रता की पहला सैनिक विप्लव शुरू हो गया और देखते ही देखते यह पूरे उत्तर भारत में फैल गया। हालांकि मंगल पाण्डे के इस कारनामे को जहां भारतीय इतिहासकार विप्लवी कहते हैं वहीं कई अंग्रेज इतिहासकार इसे हल्का आंकते हुए सैनिक विद्रोह की संज्ञा देते हैं। इतिहासकार स्वतंत्रता संग्राम को जो भी संज्ञा देते हैं, लेकिन एक बात जो जरुर है कि मेरठ की छावनी से उठने वाली इस छोटी सी चिंगारी ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला दी और भारत के आजादी की नींव रख दी।

(अजीत मिश्रा यूपी दैनिक भास्कर डॉट कॉम के मैनेजिंग एडीटर हैं।)