गुरुग्राम। हरियाणा प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष, कुमारी सैलजा के राजनैतिक सचिव व दक्षिण हरियाणा के प्रभारी राजन राव ने कहा कि कोरोना जैसी महामारी के बीच देश के प्रधानमंत्री की कार्यशैली देश और दुनिया को आश्चर्यचकित कर रही है। भयंकर आपदा में भी प्रधानमंत्री महज बयानबाजी और झूठे दावे व वादों में जुटे हैं। देश की जनता अगर सरकार व प्रधानमंत्री से जवाब तलबी करती है तो भाजपा के ज्ञानचंद उल्टे देश की जनता को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
देश की जनता पूर्ण अधिकार है कि वह सरकार व प्रधानमंत्री से सीधे जवाब मांगे कि एक साल से महामारी के खिलाफ आखिर सरकार ने संसाधनों का क्या बंदोबस्त किया? एक साल पहले करोना की पहली लहर के दौरान ही इस महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियों की जुमलेबाजी की गई। जबकि धरातल पर सरकार के पास ना दिखाने को कुछ है और ना ही बताने को। गहरा पर संकट के बीच भी देश के प्रधानमंत्री झूठे दावे और वादों की जुमलेबाजी कर रहे हैं।
एक साल पहले जब कोरोना महामारी की पहली लहर देश में आई तब बड़े स्तर पर लाखों करोड़ रुपए का बजट कोरोना रिलीफ के लिए निर्धारित किया गया था। सिलसिलेवार अगर इनके आंकड़ों पर गौर करें तो कोरोना काल के दौरान 3100 करोड़ रुपए से प्रधानमन्त्री केयर्स फंड बनाया गया था। क्या सरकार देश की जनता के सामने उसका लेखा जोखा प्रस्तुत कर सकती है? 2000 करोड़ का बजट वेंटिलेटर के लिए निर्धारित किया गया था।
सरकार बताए कि देश में कितने वेंटिलेटर आए और कहां-कहां पर आए? 100 करोड़ रुपए वैक्सीन के लिए दिए गए। क्या सरकार बता सकती है कि यह बजट किस किसको दिया गया और कितने करोड़ की वैक्सीन अभी तक बनी और जनता को उपलब्ध हुई है? पीएम रिलीफ फंड में 3800 करोड़ रुपए प्रावधान किया गया। 4316 करोड़ रुपए देश के उद्योग जगत ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने और लोगों की मदद करने के लिए सरकार को दिए। इन पैसों का हमारी सरकार ने क्या किया?
कोरोना के खिलाफ जंग में संसाधनों से जूझते देशवासी कह रहे हैं कि यह सब राष्ट्रवादी सरकार की लापरवाही का ही परिणाम है। अगर सरकार लापरवाह नहीं होती, प्रधानमन्त्री ने महज जुमलेबाजी नहीं की होती तो आज देश की यह हालत नहीं होती। हॉस्पिटल ऑक्सीजन के लिए चीत्कार नहीं कर रहे होते। श्मशान और कब्रिस्तान लाशों के अंबार से अटे नहीं होते। इतना कुछ होने के बावजूद भी सरकार में संवेदना नाम की कोई चीज नहीं है।
राव ने कहा कि सत्ता के मद में आकंठ डूबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह देश को संकट से उबारने की बजाय बंगाल फतेह में जुटे हैं। दिल्ली के सर गंगाराम जैसे बड़े हॉस्पिटल में ही ऑक्सीजन की कमी से 24 घंटे में 25 मौतें हो गई तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के दूसरे और छोटे हॉस्पिटलों का क्या हाल हो रहा होगा? देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने पांच राज्यों के चुनाव से ज्यादा अगर देश की जनता के स्वास्थ्य की फिक्र की होती तो जाहिर तौर पर देश में कोरोना संकट के ऐसे हालात कतई पैदा नहीं होते।
मैं देश नहीं मिटने दूंगा का संकल्प लेने वाले प्रधानमंत्री को अपने देश की जनता को सीधे तौर पर इस महामारी से उबरने में बरती गई लापरवाही के बारे में बताना होगा। सरकार और प्रधानमंत्री को स्वीकार करना होगा की कोरोना महामारी का विकराल रूप महज उनकी लापरवाही का ही परिणाम है। अगर अभी भी सरकार और प्रधानमंत्री नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब देश में चारों ओर शमशान ही शमशान नजर आएंगे।