बढ़ते तलाक के मामले और मुश्किल होता जा रहा संपत्ति का निपटान


गुरुग्राम। मौजूदा परिवेश में शादी के तलाक एक आम बात हो गई है। यदि तलाक जैसी अनिश्चित स्थिति बनती है तो उसका सामना कैसे करेंगे। तलाक कुछ भी हो सकता है लेकिन यह आसान है। भारत के जनगणना में तलाक से जुड़े फैक्‍ट शीट में यह बात सामने आयी है कि हर साल तलाक के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

शादीशुदा व्यक्ति जब तलाक लेने कोर्ट पहुंचता है तो इस दुखद अलगाव से पहले काफी सारी चीजों का निपटारा करना होता है। तलाक का चाहे जो भी कारण हो, लेकिन संपत्ति का बंटवारा या फिर होम लोन का बंटवारा अलग हो रहे कपल के तनाव को और बढ़ा सकता है। अतुल मोंगा, सीईओ व को-फाउंडर, बेसिक होम लोन बताते हैं कि हमें ‘तलाक’ शब्‍द सुनने को मिलता है उसके साथ गुस्‍सा, दर्द और असहनीय पीड़ा की भावना साथ-साथ चली आती है।

इसके साथ इस बात का दुख भी जुड़ जाता है कि आपने जिस रिश्‍ते पर भरोसा किया उससे निकलना होगा और इसका मन पर भावनात्मक बोझ पड़ सकता है। ऐसे कई सारे तरीके हैं जिसके माध्‍यम से अलग होने वाला कपल होम लोन का सही तरीके से निपटान कर सकता है। सबसे पहली चीज यह देखना जरूरी है कि पति और पत्‍नी दोनों प्रॉपर्टी के को-ओनर हैं या सिर्फ को-एप्‍लीकेंट हैं।

यदि प्रॉपर्टी के लिये जॉइंट होम लोन में पत्‍नी को-एप्‍लीकेंट है तो वह स्‍वाभाविक रूप से उस प्रॉपर्टी की को-ओनर हो जायेगी। ऐसे में आगे समाधान निकालना संभव है। यदि वह कपल लोन के बंटवारे को लेकर किसी आम सहमति पर नहीं पहुंच पाता तो ऐसे में प्रॉपर्टी को बेचना सबसे अच्‍छा तरीका है। इसके बाद लोन में दोनों के योगदान के हिसाब से प्रॉपर्टी से प्राप्‍त रकम को बांट दिया जाये। तलाक के साथ प्रॉपर्टी से जुड़ी परेशानी से बचने का यह सबसे आसान और सरल तरीका है, जिसका लोग पालन करते हैं।

इसका दूसरा एक और तरीका है कि दोनों में से कोई एक यह फैसला कर सकता है कि लोन पति/पत्‍नी के नाम ट्रांसफर हो जाये और इसके बाद लोन का भुगतान करने की जिम्‍मेदारी तय की जाती है। इसके अलावा, टाइटल ट्रांसफर करवाने से पहले पति/पत्‍नी भुगतान की गयी रकम दे दे। वैसे, तलाक का फैसला लेने वाले कपल को लोन तथा टाइटल ट्रांसफर कराने के दौरान स्‍टाम्‍प ड्यूटी और रजिस्‍ट्रेशन मूल्‍य संबंधित भुगतान के पूरे ब्‍यौरे को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिये।

यदि कोई एक पार्टनर होम लोन भुगतान की ईएमआई भरना बंद कर दे, तो कानून दूसरे पार्टनर को लोन का भुगतान करने तथा अचानक बंद हुई ईएमआई की वजह से जो रकम का अंतर रह गया है उसका भुगतान करने का निर्देश देता है। संयुक्‍त जिम्‍मेदारी को निभाने का यदि कोई सौहार्दपूर्ण तरीका नहीं निकलता है तो ऐसे में दोनों में किसी एक पार्टनर के नाम लोन रीफाइनेंस हो सकता है और उस संपत्ति का पूरा स्‍वामित्‍व पति/पत्‍नी के नाम हस्‍तांतरित हो सकता है।

कुछ लोन सिंगल हो सकते हैं, जिसका मतलब है कि दोनों से कोई एक पार्टनर लिये गये होम लोन का अकेला एप्‍लीकेंट हो। यदि ऐसा है तो वह लोन एप्‍लीकेंट ही उस संपत्ति का अकेला स्‍वामी होगा। यदि पति या पत्‍नी में से किसी एक की संपत्ति है तो फिर ज्‍यादा परेशानी नहीं होती। ऐसे में लोन के भुगतान की पूरी जिम्‍मेदारी उस पार्टनर की होगी, जिसने लोन लिया है।

कुछ मामलों में एक पार्टनर, दूसरे पार्टनर के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने के लिये होम लोन के लिये आवेदन करता है। इसका मतलब है कि जिस पार्टनर के नाम पर वह प्रॉपर्टी ली गयी है वह होम लोन चुकाने के लिये जवाबदेह नहीं है। इससे उपजी स्थिति को समझना थोड़ा जटिल है, वैसे इससे सुलझाने के कुछ आसान तरीके हैं।

भले ही एक पक्ष कानूनी रूप से मालिकाना हक की खुशियां मना रहा हो, लेकिन यदि दूसरा पक्ष यह साबित कर दे कि पति/पत्‍नी अब तक लोन का भुगतान कर रहा और तो वह उस पर अपना दावा पेश कर सकता या सकती है। प्रॉपर्टी का टाइटल पाने वाला नॉन-एप्‍लीकेंट पार्टनर अपने नाम पर लोन ट्रांसफर करवा सकता है, लेकिन लोन एप्‍लीकेंट द्वारा भुगतान किये गये पैसों का निपटारा करने के बाद ही। इससे संपत्ति से जुड़े सभी विवाद दूर हो जायेंगे।

भुगतान करने की जिम्‍मेदारी का बंटवारा, जैसे व्‍यक्तिगत वित्‍तीय फैसले कभी आसान नहीं होते। तलाक का यह कड़वा सच है कि अलगाव का प्रभाव इस तरह के फैसले पर प्रत्‍यक्ष रूप से होता है। यह समस्‍या और भी बिगड़ सकती है क्‍योंकि रिश्‍तों में खटास आ चुकी है और दोनों या तो लोन की अवधि से अनजान हो सकते हैं या इसको लेकर दोनों के विचार अलग हो सकते हैं।

कानूनी रूप से अलग होने का मतलब है एक कपल को ध्‍यान में रखकर की गयी फाइनेंशियल प्‍लानिंग पर अलग-अलग वित्तीय लक्ष्‍यों के रूप में दोबारा काम करना। ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि लोन तथा अन्‍य कर्जों की स्थिति का पता लगाया जा सके और उसके अनुसार समाधान निकाला जा सके।