
आखिरकार पाकिस्तान उस मोड़ पर पहुंच ही गया जहां पाकिस्तान के एक प्रांत ने कह दिया कि आर्मी वाले भाई आपका रास्ता अलग है और हमारा अलग। कृपा करके मेरे रास्ते से अब आप हट जाएं। पाकिस्तान आर्मी के एरिया कमांडर द्वारा सिन्ध प्रदेश के आईजी पुलिस मुश्ताक महार के कथित “अपहरण” के बाद जैसा विरोध फौज को झेलना पड़ रहा है, वैसा पाकिस्तान के इतिहास में आज से पहले नहीं हुआ।
पाकिस्तान में फौज सरकार के अधीन काम करनेवाला संस्थान नहीं है। वह सरकारें बनाता है, उन्हें चलाता है और अगर उसे लगता है कि अब सरकार उनके मुताबिक नहीं चल रही तो उसे गिरा भी देता है। दुनिया में हर देश के पास फौज होती है लेकिन पाकिस्तान इकलौता ऐसा देश है जहां फौज के पास एक देश है। फौज उस देश को जैसे चाहता है वैसे चलाता है। ऐसे में किसी आईजी पुलिस की हैसियत उसके सामने क्या हो सकती है?
इसलिए सोमवार को जब उसने नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन सफदर को गिरफ्तार करवाया तो गिरफ्तारी वारंट पर हस्ताक्षर करने के लिए आईजी पुलिस का अपहरण कर लिया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पाकिस्तान आर्मी और पाकिस्तान रेन्जर्स का जैसा दबाव और दबदबा है उसे देखते हुए यह कोई बड़ी घटना नहीं थी।
पाकिस्तानी फौज की राजनीतिक दखलंदाजी के खिलाफ बीते दो साल से अभियान चला रहे मौलाना फजलुर्रहमान का आरोप है कि फौज तहसील स्तर तक प्रशासन को नियंत्रित करती है। कराची में आईजीपी के कथित अपहरण के बाद मीडिया से बात करते हुए फजलुर्रहमान ने कहा कि तहसील, जिला, राज्य स्तर पर हर जगह फौज के मेजर, कर्नल, ब्रिगेडियर बैठे हैं और पर्दे के पीछे से सारा प्रशासन वही नियंत्रित करते हैं। इसे समाप्त करना होगा।
फजलुर्रहमान मुत्तहिदा मजलिस-ए-अमल के अध्यक्ष हैं और पाकिस्तान में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं। इस समय भी नेशनल असेम्बली में उनके 15 सदस्य हैं लेकिन बीते दो सालों से वो इमरान खान सरकार और पाकिस्तानी फौज के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। उनका आरोप है कि पाकिस्तानी फौज ने चुनाव में फर्जीवाड़ा करके इमरान खान को प्रधानमंत्री बनवा दिया। कट्टरपंथी देओबंदी विचारधारा से संबंध रखनेवाले फजलुर्रहमान चाहते हैं कि न सिर्फ इमरान खान सरकार को बर्खास्त किया जाए बल्कि फौज भी बार्डर पर वापस जाए। वह आंतरिक राजनीति में दखल न दे और नागरिक व्यवस्था को राजनीतिक लोगों द्वारा संचालित होने दे।
फजलुर्रहमान अच्छे से जानते हैं कि पाकिस्तान में ऐसा संभव नहीं है। जिस देश ने बनने के सत्तर साल में तीन दशक से अधिक फौजी शासन में गुजारे हों, जहां फौज व्यापार जमीन जायदाद का व्यापार करती हो, सीमेन्ट और सरिया बनाने की फैक्ट्री चलाती हो उस देश में राजनीतिक व्यवस्था से फौज को बाहर निकालना इतना आसान नहीं है।
लेकिन कराची में दो मुख्य विपक्षी दलों पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग (एन) के हाथ मिला लेने के बाद जरूर फौज को भी खतरा महसूस हुआ होगा। इसलिए कराची रैली के बाद तत्काल नवाज शरीफ के दामाद को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया कि वो जिन्ना की मजार पर जूता पहनकर चले गये थे। हालांकि कुछ घण्टों में ही सफदर को पाकिस्तान फौज ने छोड़ दिया लेकिन जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया उससे पाकिस्तान में राजनीतिक भूचाल आना तय था।
जैसे ही ये खबर लीक हुई कि पाकिस्तानी फौज द्वारा सिंध के आईजीपी का ‘अपहरण’ करके कैप्टन सफदर के गिरफ्तारी वारंट पर हस्ताक्षर करवाया गया है पाकिस्तान में बवाल मच गया। इस बवाल में आईजीपी की छुट्टी के आवेदन ने आग में घी का काम किया। देखते ही देखते प्रशासनिक दबाव राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में परिवर्तित हो गया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सीधे तौर पर पुलिस प्रशासन का साथ दिया।
सिन्ध असेम्बली में पीपीपी की सरकार है इसलिए उसने अपने पुलिस अधिकारी के समर्थन में न सिर्फ विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया बल्कि आर्मी की इस गुप्त कार्रवाई की आलोचना भी किया। उधर, नवाज शरीफ की बेटी और मुस्लिम लीग की नेता मरियम नवाज ने इस मामले में सेना से खुलकर मोर्चा लिया। मरियम नवाज ने भी सबसे पहले ये खुलासा किया था कि फौज के इशारे पर उनके पति को गिरफ्तार करने की कार्रवाई की गयी।
बहरहाल फौज के प्रमुख जनरल बाजवा द्वारा इस पूरे मामले की जांच के आदेश के बाद आग जरूर ठंडी होगी लेकिन असल में ये झगड़ा जितना फौज और पुलिस का है उतना ही सिन्ध और पंजाब का भी है। सिन्ध प्रदेश लंबे समय से अपने उपेक्षा का आरोप लगाता रहा है। उसमें पाकिस्तानी फौज और रेन्जर्स द्वारा आये दिन कराची में चलनेवाली आतंकवाद विरोधी कार्रवाई भी सिन्ध प्रशासन के लिए स्वीकार नहीं रहा है।
कराची में ही मुत्तहिदा कौमी मूवमेन्ट का मुख्यालय है और आये दिन मोहाजिरों के खिलाफ फौज और रेन्जर्स कार्रवाई करते रहते हैं। इसलिए सिन्ध में पाकिस्तानी फौज को वैसा समर्थन नहीं हासिल है जैसा पंजाब में हासिल है। जनरल कमर जावेद बाजवा जो कि स्वयं पंजाब से हैं, समझदार व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए तत्काल उन्होंने पूरे मामले की जांच का आदेश दे दिया।
लेकिन पाकिस्तान की फौज में ऐसे लोगों का अकाल है। जो फौज अपने ही देश में कार्रवाई करके बहादुरी के तमगे लेती हो उससे ये उम्मीद करना कि वह अपने नियंत्रण को छोड़ देगी, नासमझी होगी। हो सकता है ये विवाद तात्कालिक रूप से समाप्त भी हो जाए लेकिन पाकिस्तान में पंजाब और सिन्ध का बंटवारा बहुत गहरा है। इसलिए भविष्य में ऐसे विवाद अलगाव के रास्ते पर भी चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।