कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने अभ्रक खनन क्षेत्र में 12,000 से अधिक बच्चों को कराया बाल श्रम से मुक्‍त


कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन ने बाल मित्र ग्राम परियोजना के तहत 500 से अधिक गांवों के हजारों बच्चों और उनके परिवारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का काम किया है।


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कैलाश सत्‍यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) ने अंतरराष्‍ट्रीय बाल दिवस की पूर्व संध्‍या पर अपने फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘बाल मित्र ग्राम’ (बीएमजी) के जरिए झारखंड और बिहार के अभ्रक खनन क्षेत्र को 15 सालों में बाल मजदूर मुक्‍त बनाने के लिए किए गए कार्यों और बदलाव पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। दो सत्रों में विभाजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी ने की। जबकि झारखंड के श्रम एवं रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे।

फाउंडेशन ने बाल मित्र ग्राम परियोजना के तहत 500 से अधिक गांवों के हजारों बच्चों और उनके परिवारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का काम किया है। बीएमजी कार्यक्रम के माध्यम से केएससीएफ के सहयोग से दैनिक आधार पर 83,228 बच्चों को सुरक्षा मिली है। जबकि 40,000 से अधिक बच्चों की स्कूलों में नियमित और लगातार उपस्थिति दर्ज हुई। जिसका अभ्रक खनन क्षेत्र के 35,000 से अधिक परिवारों पर प्रभाव पड़ा। बीएमजी के माध्यम से स्‍कूल से बाहर हो चुके या अनियमित 21,000 से अधिक बच्‍चों को फिर से स्‍कूलों से जोड़ा गया।

बाल मित्र ग्राम कैलाश सत्यार्थी का बच्चों के अनुकूल दुनिया बनाने की दिशा में एक अभिनव प्रयोग है। यह लोकतंत्र का एक जानदार उदाहरण भी पेश करता है। बाल मित्र ग्राम उन गावों को कहा जाता है, जहां कोई बच्चा बाल मजदूरी नहीं करता और सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। बच्चों की चुनी हुई पंचायत होती है और ग्राम पंचायत बाल पंचायत को मान्यता देती है और पंचायत के निर्णय में बच्चों की पूरी भागीदारी होती है। निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी और बदलाव में हिस्सेदारी से बच्चों में नेतृत्व गुण विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

दो सत्रों में विभाजित इस परिचर्चा में बड़ी संख्या में सिविल सोसायटी संगठनों, कॉरपोरेट घरानों और पूर्व बाल श्रमिकों में हिस्सा लिया। पहला सत्र “झारखंड और बिहार के अभ्रक खनन क्षेत्रों में बाल श्रम की स्थिति” पर था। हुई। इस सत्र का संचालन निकिता कुमारी और मनन अंसारी ने किया। ये दोनों ही कभी अभ्रक क्षेत्र में बाल मजदूर के रूप में काम करते थे और पढ़ाई लिखाई करके अब अच्छे करियर के साथ जीवनयापन कर रहे हैं। जबकि दूसरा सत्र ‘‘बाल श्रम मुक्‍त अभ्रक निर्माण : मुक्‍त बाल मजदूरों और कार्यकर्ताओं की आवाज’’ विषय पर केंद्रित था।

इस अवसर पर बाल अधिकार कार्यकर्ता  कैलाश सत्यार्थी ने अभ्रक खदान क्षेत्रों में बाल मित्र ग्राम निर्माण के प्रयोग से संबंधित अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सत्‍यार्थी ने कहा, “मैं 15 साल पहले जब पहली बार झारखंड गया था, तो 4 साल से कम उम्र के बच्चों को जानलेवा अभ्रक खदानों में काम करते हुए पाया था। उनके छोटे हाथ और फुर्तीली ऊंगलियों का उपयोग जहां रंगने, खेलने और लिखने के लिए किया जाना चाहिए था, उन पर अभ्रक की धूल जमी हुई थी। अभ्रक के नुकीले सिरे से कई हाथ कट भी जाते थे।” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए  सत्‍यार्थी ने कहा, “यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक बच्चा सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित हो, हमने बच्चों को केंद्र में रखते हुए समग्र ग्राम विकास का एक बदलावकारी मॉडल बनाया, जो बाल श्रम मुक्त अभ्रक आपूर्ति-बाल मित्र ग्राम (चाइल्‍ड फ्रेंडली विलेज) को सुनिश्चित करेगा। बाल मित्र ग्राम लोकतांत्रिक ढांचे का निर्माण करके उनके जीवन के बारे में निर्णय लेने में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करता है और उन्हें अपने अधिकारों को प्राप्‍त करने के लिए सशक्त बनाता है। ये सशक्त लड़कियां और लड़के बदलाव के युवा वाहक हैं जो देश को उज्जवल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं। आइए, हम सब मिलकर एक बाल-हितैषी दुनिया बनाने का प्रयास करें जहां हर बच्चा, बच्चा होने के लिए स्वतंत्र हो। उसका बचपन आजाद हो।”

इस अवसर पर झारखंड सरकार के श्रम और रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने बाल मित्र ग्राम परियोजना की प्रशंसा की। भोक्‍ता ने झारखंड सरकार और अपनी ओर से अंतरराष्‍ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर सभी बच्‍चों को बधाई देते हुए कहा, “आज का दिन हम सब लोगों के लिए यह संकल्‍प लेने का दिन है कि हम सब मिलकर बाल श्रम को समाप्‍त करें और सभी बच्‍चों के लिए गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा की व्‍यवस्‍था करें। हम कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंउेशन और कैलाश सत्‍यार्थी को इस बात के लिए ध्‍न्‍यवाद देते हैं कि सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए वे जमीनी स्‍तर पर कार्य कर रहे हैं।

झारखंड सरकार बच्‍चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है। राज्‍य की बहुत सारी ऐसी योजनाएं हैं जिनका लाभ बच्‍चों तक सीधे-सीधे पहुंच रहे हैं। हमने कोडरमा प्रशासन को यह आदेश दिया है कि जो बच्‍चे अभ्रक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं उन्‍हें वहां से मुक्‍त कराएं और उनका स्‍कूलों में नामांकन कराएं। झारखंड सरकार की ओर से कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन को अभ्रक क्षेत्र को बाल श्रम मुक्‍त बनाने के लिए हरसंभव सहयोग मिलेगा।”

पहला सत्र “झारखंड और बिहार के अभ्रक खनन क्षेत्रों में बाल श्रम की स्थिति” पर था। इस सत्र में परिचर्चा में लेडी डायना अवार्डी चम्‍पा कुमारी, झारखंड के कोडरमा जिले में बाल विवाह के खिलाफ अभियान की ब्रांड अम्‍बेसडर राधा पांडे, पर्यावरण कार्यकर्ता काजल कुमारी और बाल अधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद शाकिब और प्रीति कुमारी ने भी हिस्सा लिया। सभी ने बाल मित्र ग्राम कार्यक्रम की मदद से बाल श्रम से मुक्त होने के कारण एक अभ्रक खनिक के रूप में अपने जीवन की दुश्वारियों और शिक्षा की कमी एवं शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन में आने वाले बदलावों को सबके सामने साझा किया। छह साल की उम्र में अभ्रक खदानों में पूर्व बाल मजदूर रहे और एमएससी की पढाई करने वाले युवा संगीतकार मनन अंसारी ने बाल श्रम पर अपने विचार साझा करते हुए कहा, “मुझे अभ्रक को चुनने के लिए खदानों के अंदर रेंगना पड़ता था। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे उस दलदल से मुक्‍त कराया गया। लेकिन हर कोई मेरे जैसा खुशनसीब कहां! मुझे याद है मेरा एक दोस्त, जो लगभग 10 साल का था, अभ्रक लेने के लिए चूहे के छेद में घुस गया था और पूरी खदान उस पर गिर गई।”

जबकि दूसरा सत्र ‘‘बाल श्रम मुक्‍त अभ्रक निर्माण : मुक्‍त बाल मजदूरों और कार्यकर्ताओं की आवाज’’ विषय पर केंद्रित था। इसमें अमेरिका की दो अंतरराष्ट्रीय कंपनियों-एस्टी लॉडर और अवेदा तथा गैर-सरकारी संगठन ‘द हंस फाउंडेशन’ के प्रतिनिधि, भारतीय टेक कंपनी प्ले गेम्स 24*7 एवं जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण, कोडरमा के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सत्र का संचालन दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के प्रो. संजय भट्ट ने किया।

इसमें बाल श्रम और बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कर उन्‍हें समाज की नेतृत्‍वकारी शक्ति बनाने की आवश्यकता, सरकार की भूमिका, गैर सरकारी संगठनों, व्‍यापारिक जगत एवं भविष्य के आवश्यक हस्तक्षेप की जरूरत पर सार्थक चर्चा हुई। गणमान्य व्यक्तियों ने बाल मित्र ग्राम की उपलब्धियों की सराहना की और सभी बच्‍चों के लिए काम करने वाले विभिन्‍न संगठनों के सहयोग से इसे बड़े पैमाने पर दोहराने का आह्वान किया गया। इस अवसर पर एस्टी लॉडर कंपनी समूह के कार्यकारी निदेशक (कारपोरेट मामलों और वैश्विक संचार) डेविड हिरकॉक ने कहा, “लंबे समय तक चलने वाले सामाजिक परिवर्तन के लिए हम सन 2005 से केएससीएफ के साथ मिल कर हम काम कर रहे हैं। अभ्रक खनन क्षेत्र में बाल श्रम को समाप्‍त करने के लिए हमें समुदाय आधारित समाधान पर कार्य करना चाहिए। इसके लिए हमें सरकार का सहयोग लेना चाहिए और उनके के साथ मिलकर काम करने का प्रयास करना चाहिए।’’

झारखंड और बिहार में संपन्न अभ्रक उद्योग ने हजारों बच्चों को शोषण और उनके बचपन को खोने के जोखिम में डालने का काम किया है। अत्‍यधिक गरीबी, दरिद्रता और जागरुकता के अभाव के कारण बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। ये बच्चे अक्सर अमानवीय परिस्थितियों में अवैध खदानों में काम करने के लिए मजबूर होते हैं। केएससीएफ और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा सन 2016 में किए गए एक शोध के जरिए झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह और बिहार के नवादा जिलों के अभ्रक खनन क्षेत्र में 22,000 कामकाजी और स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की पहचान की गई थी।

इस रिपोर्ट के साक्ष्‍य के आधार पर केएससीएफ ने अपने बीएमजी मॉडल के माध्यम से अभ्रक खनन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर “स्कूल नामांकन अभियान” और बाल श्रम के खिलाफ एक गहन जागरुकता अभियान शुरू किया। बाल मित्र ग्राम मॉडल शोषण के मूल कारण का समूल खात्‍मा करने और सीधे तौर पर उन समस्याओं का समाधान करने पर बल देता है, जो बाल श्रम को पैदा करने और उसको बनाए रखने के लिए जिम्‍मेदार होते हैं। इसके बाद सन 2018 में केएससीएफ और झारखंड सरकार ने राज्य के अभ्रक खनन क्षेत्र को बाल श्रम मुक्त बनाने के लिए बीएमजी मॉडल को बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था।

भारत बढ़ते विश्व बाजार के लिए अभ्रक का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जिसकी कीमत दुनिया के बाजार में लगभग 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। केएससीएफ का शोध इस बात की ओर भी संकेत करता है कि दुनिया के अभ्रक उत्पादन का 25 प्रतिशत भारत के झारखंड और बिहार जैसे राज्‍यों से इकट्ठा किया जाता है। भारत में अभ्रक उद्योग में बाल श्रम एक बड़ी समस्या है।