
पाकिस्तान इस समय इतिहास के सबसे भीषण जल संकट से गुजर रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है भारत द्वारा सिंधु जल संधि के तहत मिलने वाले जल में भारी कटौती। स्थानीय जल विशेषज्ञों के अनुसार, भारत से बहकर आने वाला चिनाब नदी का प्रवाह 92% तक घट चुका है, जिससे पंजाब और सिंध जैसे बड़े कृषि क्षेत्रों की फसलें तबाही के कगार पर हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, 29 मई को चिनाब नदी का प्रवाह 98,200 क्यूसेक था, जो अब सिर्फ 7,200 क्यूसेक रह गया है। जल स्तर इतना गिर चुका है कि वह ‘डेड लेवल’ से भी नीचे चला गया है, जिससे 40% से अधिक खरीफ फसलें सूख चुकी हैं और बाकी पर भी संकट मंडरा रहा है।
पंजाब और सिंध के लगभग 6.5 करोड़ लोग सिंचाई के लिए चिनाब पर निर्भर हैं। जल की कमी और फसलों की बर्बादी से परेशान किसान संगठनों ने अब इस्लामाबाद कूच की चेतावनी दे दी है। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार कोई राहत नहीं दे रही और भारत के खिलाफ कोई स्पष्ट कूटनीतिक कदम नहीं उठाया गया।
कृषि संगठन ‘पीआरए’ और सिंचाई विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बारिश की कमी और जल आपूर्ति में कटौती के कारण पाकिस्तान को अब तक 4,500 अरब रुपये का नुकसान हो चुका है। भूजल स्तर भी गंभीर रूप से गिर गया है और हजारों ट्यूबवेल सूख चुके हैं।
मंगला बांध जैसे प्रमुख जल स्रोतों का जलस्तर भी खतरे की रेखा से नीचे जा चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो पाकिस्तान को एक गंभीर राष्ट्रीय खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।
पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि को बहाल करने और पानी की आपूर्ति को लेकर भारत को अब तक चार औपचारिक चिट्ठियां भेजी हैं। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से एक चिट्ठी “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भेजी गई थी। ये सभी पत्र पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को भेजे, जिसे बाद में विदेश मंत्रालय (MEA) को भेज दिया गया।
पंजाब और सिंध के किसान सरकार की ‘ग्रीन पाकिस्तान’ जैसी परियोजनाओं को काग़ज़ी ढकोसला करार देते हुए कह रहे हैं कि “कागज़ों की हरियाली नहीं, खेतों में पानी चाहिए।” किसानों का आरोप है कि सरकार सिर्फ दिखावटी योजनाओं पर ध्यान दे रही है, जबकि असली जरूरत सिंचाई व्यवस्था सुधारने की है।